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Publisher | Vani Prakashan |
Publication Year | 2023 |
ISBN-13 | 9789357750547 |
ISBN-10 | 9357750541 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 220 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22 X 14 X 1.5 |
Weight (grms) | 200 |
कौन जाता है वहाँ - असंगघोष हिन्दी दलित काव्य धारा के प्रतिनिधि कवि हैं। उनकी कविता दलित आन्दोलन की सभी प्रवृत्तियों को अपनाते हुए उसमें सार्थक योगदान देने का प्रयास करती है। दूसरे शब्दों में, जहाँ वह दलित विचारधारा से शक्ति अर्जित करती है, वहीं आज़ादी, सामाजिक न्याय और समानता के लिए बेचैन स्वर से ओत-प्रोत होकर उसे मज़बूती देती है। यह कार्य वह बिना लागलपेट के करती है यानी प्रत्यक्ष जीवन का सीधा चित्रण करती है। कोई लक्षणा-व्यंजना नहीं - बिल्कुल अभिधात्मक और सच्ची भाषा की कविता। यही उसकी कला है, और दृष्टि भी उसमें तेज़ आक्रोश और विद्रोह है, लेकिन जोश-जोश में वह यथार्थ से विचलित नहीं होती। आक्रोश और विद्रोह असंगघोष की कविता का वह 'आधार' है जिसके ऊपर 'यथार्थ' खड़ा होता है, लगभग दस्तावेज़ बनकर दूसरे शब्दों में कविता कई क्रिया-प्रतिक्रिया के बीच इन्सानियत के प्रश्न को सामने रखती है। असंगघोष की कविता, दलित आन्दोलन के केन्द्रीय चिन्तन के अनुरूप, जातिवादी सोच पर प्रहार की कविता है। इसमें 'स्वयं' अर्थात् अपनी जाति (दलित) के प्रति स्वाभाविक जागरूकता है। 'स्वाभाविक' इसलिए कि यह 'वर्ग' की अवधारणा में आवश्यक संशोधन के साथ अपना विकास करती है। वर्ग की अवधारणा जहाँ आर्थिक निर्धारणवाद का शिकार है वहीं 'जाति' की स्थिति सामाजिक व्यवस्था के अधीन है। इसलिए इस मोर्चे पर लड़ाई ज़्यादा जटिल है। इसमें कई स्तरों पर संघर्ष की माँग होती है। इस दृष्टि से असंगघोष पर्याप्त रूप से कामयाब हैं। यह कौन जाता है वहाँ असंगघोष का दसवाँ संग्रह है। सामान्यतः उम्र के साथ कवि थोड़ा रुक जाता है। लेकिन हमारा यह कवि इस बात का अपवाद है। वही राजनीतिक-सामाजिक चेतना। यही नहीं, विषय का यत्किंचित विस्तार भी हुआ है। 'सपने और मेरा सामान' जैसी कविता को देखें तो कवि उस दिशा में जाता दिखाई पड़ता है जिसे फैंटेसी की दुनिया कहते हैं। यह नयी ऊर्जा का संकेत है। कौन जाता है वहाँ नाम से स्पष्ट है कि कवि प्रभु वर्ग को चुनौती दे रहा है-उसकी सोच और विश्वासों को। ‘कविता का शीर्षक' कविता के सहारे कहें तो यह 'वर्ग' अपनी बूढ़ी दशा को प्राप्त कर 'अन्तिम यात्रा' पर है। संग्रह का सारतत्व है प्रभु वर्ग की संस्कृति पर चोट और प्रतिरोध की संस्कृति का विकास। इस दृष्टि से असंगघोष वंचित वर्ग के सच्चे प्रवक्ता के रूप में उपस्थित होते हैं। कवि आख़िर 'सचाई' का प्रवक्ता ही तो होता है। - सुधीर रंजन सिंह
Asangghosh
Vani Prakashan