Dushchakra Me Srasta

Author:

Viren Dangwal

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2002
ISBN-13

9789395737340

ISBN-10 9395737344
Binding

Paperback

Number of Pages 116 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20.3 X 25.4 X 4.7
Weight (grms) 114

कविता में यथार्थ को देखने और पहचानने का वीरेन डंगवाल का तरीक़ा बहुत अलग, अनूठा और बुनियादी क़िस्म का रहा है। सन् 1991 में प्रकाशित उनका पहला कवितासंग्रहइसी दुनियामें अगर आज भी उतना ही प्रासंगिक और महत्त्वपूर्ण लगता है तो इसलिए कि वीरेन की कविता ने समाज के साधारण जनों और हाशियों पर स्थित जीवन के जो विलक्षण ब्योरे और दृश्य हमें दिए हैं, वे कविता में और कविता से बाहर भी सबसे अधिक बेचैन करनेवाले दृश्य हैं। कविता की मार्फ़त वीरेन ने ऐसी बहुतसी चीज़ों और उपस्थितियों के संसार का विमर्श निर्मित किया जो प्राय: ओझल और अनदेखी थीं। इस कविता में जनवादी परिवर्तन की मूल प्रतिज्ञा थी और उसकी बुनावट में ठेठ देसी क़िस्म के, ख़ास और आम, तत्सम और तद्भव, क्लासिक और देशज अनुभवों की संश्लिष्टता थी। वीरेन की विलक्षण काव्यदृष्टि पर्जन्य, वन्या, वरुण, द्यौस जैसे वैदिक प्रतीकों और ऊँट, हाथी, गाय, मक्खी, समोसे, पपीते, इमली जैसी अति लौकिक वस्तुओं की एक साथ शिनाख़्त करती हुई अपने समय में एक ज़रूरी हस्तक्षेप करती थी। वीरेन डंगवाल का नया कविता-संग्रह जिसकी प्रतीक्षा काफ़ी समय से थी जैसे अपने विलक्षण नाम के साथ हमें उस दुनिया में ले जाता है जो इन वर्षों में और भी जटिल और भी कठिन हो चुकी है और जिसके अर्थ और भी बेचैन करनेवाले बने हैं। विडम्बना, व्यंग्य, प्रहसन और एक मानवीय एब्सर्डिटी का अहसास वीरेन की कविता के जानेपहचाने कारगर तत्त्व रहे हैं और एक गहरी राजनीतिक प्रतिबद्धता से जुड़कर वे हाशियों पर रह रही मनुष्यता की आवाज़ बन जाते हैं। उनकी नई कविताओं में इन काव्ययुक्तियों का ऐसा विस्तार है जो घर और बाहर, निजी और सार्वजनिक, आन्तरिक और बाह्य को एक साथ समेटता हुआ ज़्यादा बुनियादी काव्यार्थों को सम्भव करता है। विचित्र, अटपटी, अशक्त, दबीकुचली और कुजात कही जानेवाली चीज़ें यहाँ परस्पर संयोजित होकर शक्ति, सत्ता और कुलीनता से एक अनायास बहस छेड़े रहती हैं और हम पाते हैं कि छोटी चीज़ों में कितना बड़ा संघर्ष और कितना बड़ा सौन्दर्य छिपा हुआ है। साधारण लोगों, जीवजन्तुओं और वस्तुओं से बनी मनुष्यता का गुणगान और यथास्थिति में परिवर्तन की गहरी उम्मीद वीरेन डंगवाल की इन सतहत्तर कविताओं का मुख्य स्वर है। इस स्वर के विस्तारों को, उसमें हलचल करते अनुभवों को देखनामहसूस करना ही एक रोमांचक अनुभव है क्योंकि वे शायद हिन्दी कविता में पहले और इतने अनुराग के साथ कभी नहीं आए हैं। ख़ास बात यह है कि साधारण की यह गाथा वीरेन स्वयं भी एक साधारण मनुष्य के, उसी के एक हिस्से के रूप में प्रस्तुत करते हैं जहाँ स्रष्टा के दुश्चक्र में होने की स्थिति मनुष्य के दुश्चक्र में होने की बेचैनी में बदल जाती है।

Viren Dangwal

जन्म : 5 अगस्त, 1947; कीर्तिनगर, टिहरी गढ़वाल। मुजफ़्फ़रनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल में शुरुआती शिक्षा के बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. और आधुनिक हिन्दी कविता के मिथकों और प्रतीकों पर डी.लिट्.। 1971 से बरेली कॉलेज में अध्यापन। साथ ही हिन्दी और अंग्रेज़ी में पत्रकारिता। इलाहाबाद से प्रकाशित ‘अमृत प्रभात’ में कुछ वर्ष तक ‘घूमता आईना’ शीर्षक से स्तम्भ-लेखन। दैनिक ‘अमर उजाला’ के सम्पादकीय सलाहकार।कविता-संग्रह—‘इसी दुनिया’, ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’, ‘स्याही ताल’ प्रकाशित। तुर्की के महाकवि नाज़िम हिकमत की कविताओं के अनुवाद ‘पहल पुस्तिका’ के रूप में।विश्व कविता से पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख़्ट, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊष रूज़ेविच आदि की कविताओं के अलावा कुछ आदिवासी लोक-कविताओं के अनुवाद। कई कविताओं के अनुवाद बांग्ला, मराठी, पंजाबी, मलयालम और अंग्रेज़ी में प्रकाशित।‘इसी दुनिया’ में के लिए ‘रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार’, ‘श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार’। कविता के लिए ‘शमशेर सम्मान’। ‘दुष्चक्र में स्रष्टा’ पर ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’।निधन : 28 सितम्बर, 2015
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