Main Ravindranath Ki Patni (Hindi)

Author:

Ranjan bandyopadhyay

,

Shubhra Upadhyaya

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2022
ISBN-13

9789394902190

ISBN-10 9394902198
Binding

Paperback

Edition 1st
Number of Pages 166 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 19.5X13X1.5
Weight (grms) 175

‘मैं रवीन्द्रनाथ की पत्नी’ एक ऐसी पुष्पलता की कहानी है जिसे एक विराटवृक्ष के साहचर्य में आने की कीमत अपने अस्तित्व को ओझल करके चुकानी पड़ी। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की पत्नी थीं—मृणालिनी देवी। उनका सिर्फ एक ही परिचय था कि वे विश्वकवि की सहधर्मिणी हैं। उनका जीवन मात्र अट्ठाइस वर्षों का रहा, जिनमें से उन्नीस वर्ष उन्होंने रवीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में जिये। रवीन्द्रनाथ की विराट छाया में मृणालिनी का अन्तर्जगत हमेशा अँधेरे में रहने को ही अभिशप्त रहा। रवीन्द्रनाथ से इतर उनका अपना कोई अस्तित्व मानो रहा ही नहीं। लेकिन क्या सचमुच ऐसा ही था? क्या अपने निजी जीवन में मृणालिनी ने दाम्पत्य का सहज सुख पाया और अपने जीवनसाथी की सच्ची सहधर्मिणी हो पाई थीं? क्या उन्हें रवीन्द्रनाथ की पत्नी के रूप में प्रेमपूर्ण जीवन जीने को मिला था? इन तमाम सवालों का जवाब है यह उपन्यास जिसमें एक स्त्री के सम्पूर्ण मन-प्राण की व्यथा इस तरह अभिव्यक्त हुई है जो इतिहास को नई रोशनी में देखने की माँग करती है। एक अविस्मरणीय कृति!

Ranjan bandyopadhyay

रंजन बंद्योपाध्याय,महत्त्वपूर्ण बांग्ला उपन्यासकार रंजन बंद्योपाध्याय का जन्म 15 सितम्बर, 1941 को हुआ। कोलकाता के स्कॉटिश चर्च कॉलेज में अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य के व्याख्याता के रूप में उन्होंने अपने पेशेवर जीवन की शुरुआत की। सोलह साल तक अध्यापन करने के बाद 1980 के दशक में पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा और ‘आजकल’ अखबार में सह-सम्पादक बने। इसके बाद ‘आनन्द बाजार’ और ‘संवाद प्रतिदिन’ में भी सह-सम्पादक रहे। उनकी प्रमुख कृतियाँ हैं—‘कादम्बरी देवीर सुसाइड-नोट’, ‘आमि रवि ठाकुरेर बोउ’, ‘पुरोनो सेई पूजोर कथा’, ‘रवि ओ रानूर आदरेर दाग’, ‘प्राणसखा विवेकानन्द’, ‘प्लाता नदीर धारे’, ‘रस’, ‘मणिकांचन’, ‘म प्रियोतमासु’, ‘नष्ट पुरुष शरतचन्द्र’ आदि।

Shubhra Upadhyaya

शुभ्रा उपाध्याय,हिन्दी-बांग्ला की सुपरिचित लेखक और अनुवादक शुभ्रा उपाध्याय का जन्म 19 फरवरी, 1970 को हुआ। उन्होंने कलकत्ता विश्वविद्यालय से एम.ए., पी-एच.डी. की डिग्री ली है। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘अन्तराल’, ‘कतरा-कतरा जिन्दगी’ (कहानी-संग्रह); ‘समानान्तर चलती एक लड़की’ (कविता-संग्रह); ‘अज्ञेय की कहानियों का पुनर्पाठ’, ‘अपने-अपने अज्ञेय’ (सम्पादित)।सम्प्रति : वे खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज, कोलकाता में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
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