Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2018 |
ISBN-13 |
9789388183192 |
ISBN-10 |
9789388183192 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
244 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
299 |
सल्तनत काल में चरखा भारत में लोकप्रिय हुआ। इर$फान हबीब कहते हैं कि निश्चित रूप से चरखा और धुनिया की कमान सम्भवत: 13वीं और 14वीं शताब्दी में बाहर से भारत आए होंगे। प्रमाण मिलते हैं कि का$गज़ लगभग 100 ई. के आसपास चीन में बनाया गया। जहाँ तक भारत का प्रश्न है, अलबरूनी ने स्पष्ट किया है कि 11वीं सदी के आसपास प्रारम्भिक वर्षों में मुस्लिम पूरी तरह से का$गज़ का इस्तेमाल करने लगे थे। बहरत में इसका निर्माण तेरहवीं शताब्दी में ही आरम्भ हुआ जैसा कि अमीर खुसरो ने उल्लेख किया है। भारत में मुस्लिम सल्तनतों के स्थापित होने के बाद अरबी चिकित्सा विज्ञान ईरान के मार्ग से भारत पहुँचा। उस समय तक इसे यूनानी तिब्ब के नाम से जाना जाता था। परन्तु अपने वास्तविक रूप में यह यूनानी, भारतीय, ईरानी और अरबी चिकित्सकों के प्रयत्नों का एक सम्मिश्रण था। इस काल में हिन्दू वैद्यों और मुस्लिम हकीमों के बीच सहयोग एवं तादात्म्य स्थापित था। भारतीय चिकित्सा विज्ञान की दृष्टि से मुगल साम्राज्य को स्वर्णिम युग कहा जा सकता है। दिल्ली की वास्तु-कला का वास्तविक गौरव भी मुगलकालीन है। संगीत के क्षेत्र में सितार और तबला भी मुस्लिम संगीतज्ञों की देन है। विभिन्न क्षेत्रों के इन्हीं सब तथ्यों के दायरे में यह पुस्तक तैयार की गई है। तीस अध्यायों की इस पुस्तक में खास के विपरीत आम के कारनामों एवं योगदानों पर रोशनी डालने का प्रयास किया गया है। व्हेनत्सांग के विवरण को सबसे पहले पेश किया गया है ताकि मध्यकाल की सामन्तवादी पृष्ठभूमि को भी समझा जा सके। धातु तकनीक, रजत तकनीक, स्वर्ण तकनीक, कागज़ का निर्माण आदि के आलावा लल्ल, वाग्भट, ब्रह्मगुप्त, महावीराचार्य, वतेश्वर, आर्यभट द्वितीय, श्रीधर, भास्कराचार्य द्वितीय, सोमदेव आदि व्यक्तित्वों के कृतित्व पर भी शोध-आधारित तथ्यों के साथ प्रकाश डाला गया है।
Om Prakash Prasad
डॉ. ओम् प्रकाश प्रसाद 1980 ई. से स्नातकोत्तर इतिहास विभाग, पटना विश्वविद्यालय (बिहार) में प्राध्यापक (ऐसोशिएट प्रो$फेसर) के रूप में कार्यरत हैं। प्रोसीडिंग्स ऑ$फ इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में इनके $करीब 10 शोध लेख प्रकाशित हैं। इसके गोल्डन जुबली वॉल्यूम (सम्पादक : वी.डी. चट्टोपाध्याय) में इनका चयनित शोध लेख प्रकाशित है। दिल्ली विश्वविद्यालय हिन्दी कार्यान्वयन निदेशालय (दिल्ली), खुदाबख्श पब्लिक ओरियंटल लाइब्रेरी (पटना), के.पी. जायसवाल शोध संस्थान (पटना) एवं अन्य मान्यता प्राप्त प्रकाशनों से डॉ. प्रसाद की कई पुस्तकें प्रकाशित हैं। राजकमल प्रकाशन से कलियुग पर प्रकाशित पुस्तक कलयुग में इतिहास की तलाश को इस विषय पर प्रथम पुस्तक की मान्यता मिली है। इस प्रकाशन से प्रकाशित होने वाली अन्य पुस्तकें हैं—प्राचीन विश्व का उदय एवं विकास, मध्यकालीन योरोप, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, बिहार : एक ऐतिहासिक अध्ययन, प्राचीन भारत का सामाजिक एवं आर्थिक इतिहास, मध्यकालीन इतिहास में विज्ञान, प्राचीन इतिहास में विज्ञान। डॉ. प्रसाद आजकल स्नातकोत्तर इतिहास में विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पढ़ाते हैं। डॉ. प्रसाद को इंडियन काउंसिल ऑ$फ हिस्टोरिकल रिसर्च, नई दिल्ली से स्टडी ग्रांट, ट्रैवल ग्रांट, फैलोशिप और पब्लिकेशन ग्रांट मिल चुका है। शोध-प्रबन्ध डिके एंड रिवाइवल ऑ$फ मिडिवल टॉउन्स इन कर्नाटका के परीक्षक प्रो$फेसर रामशरण शर्मा और प्रो$फेसर एम.जी.एस. नारायणन थे।
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