Rakt Kalyan

Author:

Ramgopal Bajaj

Publisher:

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

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Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 2015
ISBN-13

9788171191710

ISBN-10 9788171191710
Binding

Hardcover

Number of Pages 123 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 400
सुविख्यात रंगकर्मी और कन्नड़ लेखक गिरीश कारनाड की यह नाट्यकृति एक ऐतिहासिक घटना पर आधारित है | बसवणा नाम का एक कवि और समाज-स्धारक इसका केन्द्रीय चरित्र है | ईस्वी सन 1106-1168 के बीच मौजूद बसवणा को एक अल्पजीवी 'वीरशैव संप्रदाय' का जनक माना जाता है | लेकिन बसवणा के जीवन-मूल्यों, कार्यों और उसके द्वारा रचित पदों की जितनी प्रासंगिकता तब रही होगी, उससे कम आज भी नहीं है, बल्कि अधिक है; और इसी से गिरीश कारनाड जैसे सजग लेखक की इतिहास-दृष्टि और उनके लेखन के महत्त्व को समझा जा सकता है | बसवणा के जीवन-मूल्य हैं-सामाजिकक असमानता का विरोध, धर्म-जाति, लिंग-भेद आदि से जुडी रुढियों का त्याग, और ईश्वर-भक्ति के रूप में अपने-अपने 'कायक' यानी कर्म का निर्वाह | आकस्मिक नहीं कि उसके जीवनादर्शो में यदि गीता के कर्मवाद की अनुगूँज है तो परवर्ती कबीर भी सुनाई पड़ते हैं | लेकिन राजा का भंडारी और उसके निकट होने के बावजूद रूढ़िवादी ब्राह्मणों अथवा वर्णाश्रम धर्म के पक्ष में खड़ी राजसत्ता की भयावह हिंसा से अपने 'शरणाओं' की रक्षा वह नहीं कर पाता और न उन्हें प्रतिहिंसा से ही रोक पाता है | लेखक के इस समूचे घटनाक्रम को--बासवणा के जीवन से जुड़े तमाम अत्कर्य लोकविश्वासों को झटकते हुए-एक सांस्कृतिक जनांदोलन की तरह रचा है | विचार के साथ साथ एक गहरी संवेदनशील छुअन और अनेक दृश्यबंधो में समायोजित सुगठित नात्याशिल्प | जाहिर है कि इस सबका श्रेय जितना लेखक को है, उतना ही अनुवादक को है | अतीत के कुहासे से वर्तमान की वर्क्संगत तलाश और उसकी एक नई भाषिक सर्जना-हिंदी रंगमंच के लिए ये दोनों ही चीजें सामान रूप से महत्त्वपूर्ण हैं.

Ramgopal Bajaj

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