बिश्रामपुर का संत' समकालीन जीवन की ऐसी महागाथ है जिसका फलक बड़ा विस्तीर्ण है और जो एक साथ कई स्तरों पर चलती है ! एक ओर यह भूदान आन्दोलन की पृष्ठभूमि में स्वातंत्रयोत्तर भारत में सत्ता के व्याकरण और उसी क्रम में हमारी लोकतान्त्रिक त्रासदी की सूक्ष्म पड़ताल करती है, वहीँ दूसरी ओर एक भूतपूर्व ताल्लुकेदार और राज्यपाल कुँवर जयतिप्रसाद सिंह की अंतर्कथा के रूप में महत्वाकांक्षा, आत्मछल, अतृप्ति, कुंठा आदि की जकड में उलझी हुई जिंदगी को पर्त-दर-पर्त खोलती है ! फिर भी इसमें सामंती प्रविर्तियो की हसोंमुखी कथा-भर नहीं है, उसी के बहाने जीवन में सार्थकता के तंतुओ की खोज के सशक्त संकेत भी है! यह और बात है कि कथा में एक अप्रत्याशित मोड़ के कारन, जैसा कि प्रायः होता है, यह खोज अधूरी रह जाती है! 'राग दरबारी' के सुप्रसिद्ध लेखक श्रीलाल शुक्ल की यह नवीनतम कृति, कई आलोचकों की निगाह में उनका सर्वोत्तम उपन्यास है!
Shrilal Shukla
"श्रीलाल शुक्ल
जन्म : 31 दिसम्बर, 1925 को लखनऊ जनपद (उ.प्र.) के अतरौली गाँव में।
शिक्षा : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक।
प्रकाशित कृतियाँ : उपन्यास—‘सूनी घाटी का सूरज’, ‘अज्ञातवास’, ‘राग दरबारी’, ‘आदमी का ज़हर’, ‘सीमाएँ टूटती हैं’, ‘मकान’, ‘पहला पड़ाव’, ‘बिस्रामपुर का सन्त’; कहानी-संग्रह—‘यह घर मेरा नहीं’, ‘सुरक्षा तथा अन्य कहानियाँ’, ‘इस उम्र में’; व्यंग्य-संग्रह—‘अंगद का पाँव’, ‘यहाँ से वहाँ’, ‘मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ’, ‘उमरावनगर में कुछ दिन’, ‘कुछ ज़मीन पर कुछ हवा में’, ‘आओ बैठ लें कुछ देर’, ‘अगली शताब्दी का शहर’, ‘जहालत के पचास साल’; आलोचना—‘अज्ञेय : कुछ राग और कुछ रंग’; विनिबन्ध—‘भगवतीचरण वर्मा’, ‘अमृतलाल नागर’; बाल-साहित्य—‘बब्बर सिंह और उसके साथी’।
अनुवाद : 'पहला पड़ाव’ अंग्रेज़ी में अनूदित और 'मकान’ बांग्ला में। 'राग दरबारी’ सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं सहित अंग्रेज़ी में।
प्रमुख सम्मान : ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’, ‘व्यास सम्मान’, ‘पद्मभूषण सम्मान’, ‘साहित्य अकादेमी पुरस्कार’, ‘साहित्य भूषण सम्मान’, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का ‘गोयल साहित्य पुरस्कार’, ‘लोहिया अतिविशिष्ट सम्मान’, म.प्र. शासन का ‘शरद जोशी सम्मान’, ‘मैथिलीशरण गुप्त सम्मान’।
निधन : 28 अक्टूबर, 2011"
Shrilal Shukla
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