Purabiyon Ka Lokvritt : Via Des-Pardes (Hb)

Author:

Dhananjay Singh

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs570 Rs695 18% OFF

Availability: Available

    

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2020
ISBN-13

9789389577518

ISBN-10 9789389577518
Binding

Hardcover

Number of Pages 247 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 360
लोक एक गतिशील सांस्कृतिक संरचना है। वस्तुत: यह उस सामूहिक विवेकशील जीवन-पद्धति का नाम है जो सहज, सरल और भौतिकवादी होने के साथ-साथ अपनी जीवन्त परम्पराओं को अपने दैनिक जीवन के संघर्ष से जोड़ती चलती है। यह लोकमानस को आन्दोलित करने का सामर्थ्य रखती है। एक समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में उसे समझने की चेष्टाएँ अक्सर उसकी अन्दरूनी गतिशीलता और परिवर्तनशीलता की अनदेखी करती चलती हैं। इसके चलते यह मान लिया जाता है कि लोकसंस्कृति प्राक्-आधुनिक समाज की संस्कृति है और इस समाज के विघटन के साथ लोक को भी अन्तत: विघटित होना ही है। समाजविज्ञानों के पास एक ऐसे लोक की कल्पना ही नहीं है जो आधुनिकता के थपेड़े खाकर भी जीवित रह सके। सच्चाई यह है कि वास्तविकता के धरातल पर लोक न सिर्फ विद्यमान है बल्कि अपार जिजीविषा के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव के साथ कदम मिलाते हुए वह निरन्तर अपने को बदलने का प्रयत्न भी कर रहा है। लोक का सामना कामनाओं की बेरोक-टोक स्वतंत्रता पर आधारित जिस भोगमूलक संस्कृति से हो रहा है, उसके पीछे साम्राज्यवाद की अनियंत्रित ताकत भी है। यह किसी भी समाज की बुनियादी मानवीय आकांक्षाओं को नकारकर अपने निजी हितों के अनुकूल, उसकी प्राथमिकताओं को मोड़ने में समर्थ है। इस पुस्तक में पूरबिया संस्कृति के अनुभवाश्रित विश्लेषण, उसकी जिजीविषा और कामकाज के सिलसिले में स्थानांतरण के परिप्रेक्ष्य में उसके सामने मौजूद चुनौतियों का अध्ययन किया गया है।

Dhananjay Singh

24 दिसम्बर, 1979 को बिहार के भोजपुर जिले के कुसुम्हाँ गाँव में जन्म। प्रारम्भिक शिक्षा ग्रामीण परिवेश में लेकिन उच्च शिक्षा के लिए दिल्ली आना हुआ जहाँ से डॉक्टरेट तक शिक्षा प्राप्त की। दिल्ली विश्वविद्यालय में ही कई वर्ष अध्यापन; भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला और नेहरू मेमोरियल म्यूजियम एंड लाइब्रेरी, तीनमूर्ति में फेलो रह चुके हैं; प्रवासी श्रम इतिहास मौखिक स्रोत: भोजपुरी लोकसाहित्य, प्रवासी श्रमिकों की संस्कृति और भिखारी ठाकुर का साहित्य, भिखारी ठाकुर और लोकधर्मिता इत्यादि किताबों के अलावा अनेक पत्र-पत्रिकाओं में लेखन किया है। फ़िलहाल पॉन्डिचेरी के यानम जिले में एक राजकीय डिग्री कॉलेज में अध्यापन के साथ प्रवासी पुरबियों की दृश्य-संस्कृति पर शोध कर रहे हैं।
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