Yeh Kaisa Majak Hai Va Anya Kavitayein

Author:

Madan Daga

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2023
ISBN-13

9788119159932

ISBN-10 8119159934
Binding

Paperback

Number of Pages 168 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22 X 14 X 1

हर चन्द वर्ष बाद/हमें इन दरिन्दों को/समझाना पड़ता है कि इन्कलाबमरी खाल की आह नहीं है/दुनियाकोई क़त्लगाह नहीं है/आज़ादीकोई गुनाह नहीं है! व्यवस्था की आँख में आँख डालकर संवाद करने वाली ये कविताएँ, कोई आश्चर्य नहीं कि उस कवि की क़लम से ही उतरी होंगी जिसने सिद्धान्त, सच, मनुष्यता और अवाम को पहले, और सुख-सुविधाओं के आकर्षण को बहुत-बहुत पीछे रखा। मदनलाल डागा ऐसे ही कवि थे। वे विचार के लिए जिए। साहित्यिक कौशल के सहारे आर्थिक सफलताओं का रास्ता भी उन्होंने नहीं पकड़ा। वे मानते थे कि साहित्य का काम सिर्फ़ यह दिखाना नहीं है कि समाज कैसा है, उसका काम अपने समय और अपने संसार का विश्लेषण और उनकी आलोचना करना है, अपने समय के नियंताओं को यह बताते रहना है कि वे कहाँ ग़लत हैं। उनकी कविताएँ यही करती रहीं। राजनीतिक सत्ता-केन्द्रों की संवेदनहीनता, स्वार्थ और नौकरशाही के निर्लज्ज भ्रष्टाचार के सामने अवाम की असहायता उन्हें लगातार व्यथित करती रही। सिर्फ़ भावना के स्तर पर, बल्कि स्वास्थ्य और शरीर के स्तर तक। सीधे-साफ़ शब्दों, तीखे व्यंग्य और स्पष्ट पक्षधरता से चमकती इन कविताओं में कई कविताएँ ऐसी रहीं जो हड़तालों-आन्दोलनों में नारों की तरह पढ़ी गईं, उनके पोस्टर बने, पर्चे छपे, संघर्षरत मज़दूरों, कर्मचारियों और छात्रों ने उन्हें अपने आक्रोश का स्वर बनाया। इस संग्रह में शामिल कविताएँ, कुछ ग़ज़लें, हाइकू और मुक्तक हमें अपने समय से संवाद करने में भी निश्चय ही मदद करेंगी।

Madan Daga

मदन डागा का जन्म 10 अक्तूबर, 1933 को जोधपुर, राजस्थान में हुआ। उन्होंने जोधपुर विश्वविद्यालय से एम.ए. (हिन्दी) और पी-एच.डी. किया। वे जोधपुर विश्वविद्यालय के सीनेटर, राजस्थान लेखक संघ के महामंत्री, एस.एम.एस.एस. एम्प्लॉइज यूनियन, जोधपुर के उपाध्यक्ष, सोवियत सांस्कृतिक संघ, साहित्य संगम, जोधपुर के सचिव समेत कई महत्त्वपूर्ण पदों पर रहे। जीवन-यापन के लिए सड़कों पर हॉकर बने, दुकानों में काम किया, सरकारी सर्वे करने गाँव-गाँव भटके, फिर स्कूलमास्टरी की। कमला नेहरू गर्ल्स कॉलेज, ला. मे. कॉलेज ऑफ साइंस, जोधपुर विश्वविद्यालय तथा सो. कॉमर्स कॉलेज आदि में अध्यापन किया। छात्र-जीवन से ही विभिन्न आन्दोलनों में सक्रिय रहे। धरने दिए। घेराव किये, पुलिस की लाठियाँ व जेल की हवा भी खूब खाई। वे बहुचर्चित छात्रनेता रहे तो विद्यार्थी-प्रिय शिक्षक व जनप्रिय लेखक भी। रचनाएँ पोस्टर बनीं तो आकाशवाणी से प्रसारित होते काटी-छाँटी व आपातकाल में रोकी भी गईं। अनेक भाषाओं में अनूदित हुईं। उनकी रचनाएँ जन-संघर्षों का हथियार बनीं। उनकी प्रकाशित पुस्तकें हैं—‘आँसू का अनुवाद’, ‘सीपी का सैलाब’, ‘साहित्यकार व साम्प्रदायिकता अजानी सलीबों पर’, ‘धौरां भाई वोल्गा’, ‘सीपी-मुक्ता’, ‘सावचैत रैणो है’, ‘कुर्सीप्रधान देश’, ‘शाकाहारी कविताएँ’, ‘यह कैसा मज़ाक़ है व अन्य कविताएँ’ आदि। 29 अप्रैल, 1985 को मुम्बई में निधन।
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