Publisher |
LOKBHARTI PRAKASHAN |
Publication Year |
2019 |
ISBN-13 |
9789389243123 |
ISBN-10 |
9389243122 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
168 Pages |
Language |
(Hindi) |
रामधारी सिंह ‘दिनकर’ की एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण पुस्तक है 'लोकदेव नेहरू'। पंडित नेहरू के राजनीतिक और अन्तरंग जीवन के कई अनछुए पहलुओं को जिस निकटता से प्रस्तुत करती है यह पुस्तक, वह केवल दिनकर जी के ही वश की बात लगती है। दिनकर जी ने 'लोकदेव' शब्द विनोबा जी से लिया था जिसे उन्होंने नेहरू जी की श्रद्धांजलि के अवसर पर व्यक्त किया था। दिनकर जी का मानना भी है कि 'पंडित जी, सचमुच ही, भारतीय जनता के देवता थे।'जैसे परमहंस रामकृष्णदेव की कथा चलाए बिना स्वामी विवेकानन्द का प्रसंग पूरा नहीं होता, वैसे ही गांधी जी की कथा चलाए बिना नेहरू जी का प्रसंग अधूरा छूट जाता है। इसीलिए इस पुस्तक में एक लम्बे विवरण में यह समझाने की कोशिश गई है कि इन दो महापुरुषों के पारस्परिक सम्बन्ध कैसे थे और गांधी जी के दर्पण में नेहरू जी का रूप कैसा दिखाई देता है। गांधी जी और नेहरू जी के प्रसंग में स्तालिन की चर्चा, वैसे तो बिलकुल बेतुकी-सी लगती है, लेकिन नेहरू जी के जीवन-काल में छिपे-छिपे यह कानाफूसी भी चलती थी कि उनके भीतर तानाशाही की भी थोड़ी-बहुत प्रवृत्ति है। अत: इस पुस्तक में पाठक नेहरू जी के प्रति दिनकर जी के आलोचनात्मक आकलन से भी अवगत होंगे। वस्तुत: दिनकर जी के शब्दों में कहें तो 'यह पुस्तक पंडित जी के प्रति विनम्र श्रद्धांजलि है।'
Ram Dhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।
Ram Dhari Singh Dinkar
LOKBHARTI PRAKASHAN