Meri Yatrayen

Author:

Ramdhari Singh Dinkar

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

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Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 2019
ISBN-13

9789389243192

ISBN-10 9789389243192
Binding

Paperback

Number of Pages 192 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 210
इस पुस्तक में पोलैंड, जर्मनी, चीन, मारीशस, कीनिया आदि देशों की यात्राओं का रोचक वर्णन है। दिनकर जी ने अपनी इन यात्राओं को जिस तरह रचनात्मक संवाद का विषय बनाया है, वह अपने प्रभाव में विलक्षण है। पुस्तक का हर अध्याय एक आत्मीयता के साथ सहज ही अपने बहाव में लिए चला जाता है। पोलैंड का वारसा नगर, जहाँ हिटलर के राज्यकाल में नाजियों द्वारा लाखों बेगुनाह मारे गए थे, वह अपने बदले समय में किस तरह राजनीतिक स्वतंत्रता, साहित्यिक-सांस्कृतिक उर्वरता का प्रतीक है; साथ ही अपने साम्यवादी देश की अर्थ-व्यवस्था के लिए आम नागरिकों में भी किस तरह की संघर्ष-चेतना है; दिनकर जी ने तटस्थ होकर आकलन प्रस्तुत किया है। ऐसा वे चीन की यात्रा के दौरान भी करते हैं। वहाँ भी उन्होंने एक साम्यवादी देश के समाज, साहित्य, राजनीति के साथ रहन-सहन, खान-पान, बोलचाल आदि को बहुत ही करीब से देखने-समझने की कोशिश की है और अन्तर्विरोधों के प्रति अपने बेबाक मंतव्यों से परिचय कराया है। इसी तरह जर्मनी, लंदन, कीनिया जैसे देशों के वर्तमान और अतीत का जो वृत्तान्त है, वह अपने वैज्ञानिक और दार्शनिक बोध में आज भी बेहद महत्त्वपूर्ण है। भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गए लोगों का अपने मूल और मूल्यों के प्रति श्रद्धा और आस्था किस तरह पीढ़ी-दर-पीढ़ी बनी हुई है, उसका गहन अन्वेषण दिनकर जी अपनी मारीशस यात्रा के दौरान करते हैं। कुल मिलाकर 'मेरी यात्राओँ' पुस्तक एक ऐसी थाती है जिसके जरिए बीसवीं सदी में कई देशों के उस यथार्थ से अवगत होते हैं, उन देशों के विकास में जिसकी निर्णायक भूमिका रही। चीन के बौद्ध लोग पश्चिमी स्वर्ग में विश्वास करते थे, जहाँ अमिताभ का न है । नए चीनियों का यह मत है कि वह पश्चिमी स्वर्ग भारत ही था । सुखावटी व्यूह के प्रचार के कारण ही चीन के बौद्ध लोग पश्चिमी स्वर्ग में विश्वास करने लगे । किन्तु, संस्कार यह बन गया कि चीन की जनता सभी अच्छी बातों को भारत से ही आई हुई समझने लगी ।

Ramdhari Singh Dinkar

राष्ट्रकवि 'दिनकर' छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओं में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति। वे संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू के भी बड़े जानकार थे। वे 'पद्म विभूषण' की उपाधि सहित 'साहित्य अकादेमी पुरस्कार', 'भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार' आदि से सम्मानित किए गए थे।.
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