Doobte Mastool (Hindi)

Author:

Shrinaresh Mehta

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs95

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2012
ISBN-13

9788180317231

ISBN-10 8180317234
Binding

Paperback

Edition 1st
Number of Pages 159 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22x14x1
Weight (grms) 200

परिस्थितियों के संघात से टूटती-बनती एक अप्रतिम सुन्दर नारी की विवश-गाथा का प्रतीक नाम है—‘डूबते मस्तूल’। वस्तुत: नारी की यह विवशता किसी भी युग में कम नहीं हुई है। उसका विन्यास परिवेश के बदलने के साथ कुछ परिवर्तित भले ही लगे, पर पुरुष कभी उसे वही स्थान और मान्यता नहीं देता जो वह किसी अन्य पुरुष को देता है। स्वयं नारी को अपने इस भोग्या स्वरूप से कितना विद्रोह है पर प्रकृति के विधान का उल्लंघन कर पाना एक सनातन समस्या है। अपने इस प्रथम उपन्यास ‘डूबते मस्तूल’ में नरेश जी ने नारी के एक प्रखर स्वरूप को भावनाओं और घटनाओं, के माध्यम से जब प्रस्तुत किया था सन् 1954 में, तभी से इसकी नायिका रंजना हिन्दी-उपन्यास के पाठकों की स्मृति बन गई।

Shrinaresh Mehta

जन्म: 15 फरवरी, 1922 को शाजापुर (मालवा) में हुआ। शिक्षा: आरम्भिक शिक्षा कई स्थानों पर हुई और बाद में माधव कॉलेज, उज्जैन से इण्टरमीडिएट किया। आपने काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया। यहाँ आप पर अपने गुरु श्री केशवप्रसाद मिश्र का गहरा प्रभाव पड़ा। श्री मिश्रजी वेद एवं उपनिषदों के ज्ञाता एवं प्रकाण्ड पंडित थे। गतिविधियाँ: उज्जैन में ही आप स्वाधीनता-आन्दोलन (1942) में छात्र-नेता के रूप में सक्रिय हुए। सन् 1948 से 53 तक आप आकाशवाणी के विभिन्न केन्द्रों पर कार्यक्रम अधिकारी रहे। 1955 तक आप वामपंथी राजनीति से भी सम्बद्ध रहे। विद्यार्थी-काल में वाराणसी से प्रकाशित दैनिक ‘आज’ और ‘संसार’ में कार्यरत रहे। सन् 1953 में सरकारी सेवा से मुक्त होकर कुछ समय के लिए गाँधी प्रतिष्ठान से जुड़े और तत्पश्चात् राष्ट्रीय मजदूर कांग्रेस के प्रमुख साप्ताहिक ‘भारतीय श्रमिक’ के प्रधान सम्पादक रहे। साथ ही ‘कृति’ एवं ‘आगामी कल’ जैसी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं का सम्पादन किया। पुरस्कार/सम्मान: म.प्र. शासन सम्मान, सारस्वत सम्मान, म.प्र. शासन शिखर सम्मान, उ.प्र. शासन संस्थान सम्मान। 1985 में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का मंगला प्रसाद पारितोषिक, केन्द्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार, उ.प्र. शासन का सर्वोच्च ‘भारत भारती’ सम्मान, म.प्र. नाटक लोककला अकादमी द्वारा अलंकृत, म.प्र. हिन्दी साहित्य सम्मेलन का ‘भवभूति अलंकरण’, और सन् 1992 में भारतीय ज्ञानपीठ का सर्वोच्च साहित्य पुरस्कार। साहित्य सेवा: सन् 1959 से 85 तक आपने इलाहाबाद में रहकर स्वतन्त्र लेखन किया। 1985 से फरवरी, 1992 तक प्रेमचन्द सृजनपीठ के निदेशक रहे। प्रमुख दैनिक ‘चौथा संसार’ के प्रधान सम्पादक भी रहे। काव्य, खण्डकाव्य, उपन्यास, एकांकी, कहानी, निबन्ध, यात्रा-वृत्तांत आदि विधाओं में 40 से ज्यादा रचनाएँ प्रकाशित। निधन: 22 नवम्बर, 2000.
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