AK NAUKRANI KI DIARY

Author:

Krishna Baldev Vaid

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2007
ISBN-13

9788126714155

ISBN-10 8126714158
Binding

Paperback

Number of Pages 230 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 21.5 X 14 X 1.5

प्रख्यात उपन्यासकार कृष्ण बलदेव वैद का यह उपन्यास हमारे नागर-समाज के उस उपेक्षित तबके पर केन्द्रित है जिसकी समस्याओं पर हम संवेदनशील तरीके से कभी बात नहीं करते मगर जिसके बिना हमारा काम भी नहीं चल पाता। शहरों के घरों में चौका-बरतन और सफाई इत्यादि करनेवाली नौकरानियों की रोजमर्रा की जिन्दगी और उनकी मानसिकता इसका केन्द्रीय विषय है। एक युवा होती नौकरानी की मानसिक उथल-पुथल को लेखक ने इस उपन्यास में बड़े ही मार्मिक ढंग से चित्रित किया है तथा डायरी के माध्यम से बड़ी कुशलता पुर्वक से इस उपेक्षित वर्ग के साथ-साथ हमारे कुलीन समाज की विडम्बना को भी पहचानने-परखने का अवसर दिया है। प्रवाहपूर्ण भाषा में लिखित यह उपन्यास फ्रायड के उस उपन्यास की याद दिलाता है जो उन्होंने एक युवा होती लड़की की मानसिकता का चित्रण करने के उद्देश्य से डायरी के रूप में लिखा था। यह उपन्यास आरम्भ से ही पाठक की जिज्ञासा को जगाने में सफल है। उपन्यास की नायिका शानो हिन्दी साहित्य का वह चरित्र है जिसे पाठक हमेशा याद रखेंगे।

Krishna Baldev Vaid

कृष्‍ण बलदेव वैद जन्म : 27 जुलाई, 1927; डिंगा (पंजाब)। शिक्षा : एम.ए. (अंग्रेज़ी), पंजाब विश्वविद्यालय (1949); पीएच.डी., हार्वर्ड विश्वविद्यालय (1961)। हंसराज कॉलिज, दिल्ली विश्वविद्यालय (1950-62); अंग्रेज़ी विभाग, पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ (1962-66); अंग्रेज़ी विभाग, न्यूयॉर्क स्टेट विश्वविद्यालय (1966-85); अंग्रेज़ी विभाग, ब्रेंडाइज़ विश्वविद्यालय (1968-69) में अध्‍यापन। भारत भवन, भोपाल में ‘निराला सृजन पीठ’ के अध्‍यक्ष भी रहे (1985-88)। प्रकाशित कृतियाँ : ‘उसका बचपन’, ‘बिमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ कहाँ’, ‘नसरीन’, ‘दूसरा न कोई’, ‘दर्द ला दवा’, ‘गुज़रा हुआ ज़माना’, ‘काला कोलाज’, ‘नर-नारी’, ‘मायालोक’, ‘एक नौकरानी की डायरी’ (उपन्यास); ‘बीच का दरवाज़ा’, ‘मेरा दुश्मन’, ‘दूसरे किनारे से’, ‘लापता’, ‘उसके बयान’, ‘वह और मैं’, ‘ख़ामोशी’, ‘आलाप’, ‘लीला’, ‘पिता की परछाइयाँ’, ‘मेरा दुश्मन’, ‘रात की सैर’, ‘बोधिसत्व की बीवी’, ‘‘बदचलन’ बीवियों का द्वीप’, ‘ख़ाली किताब का जादू’, ‘प्रवास गंगा’, ‘मेरी प्रिय कहानियाँ’, ‘दस प्रतिनिधि कहानियाँ’, ‘चर्चित कहानियाँ’, ‘सम्पूर्ण कहानियाँ’ (दो जिल्दों में) (कहानी); ‘भूख आग है’, ‘हमारी बुढ़‍िया’, ‘सवाल और स्वप्न’, ‘परिवार अखाड़ा’, ‘मोनालिसा की मुस्कान’, ‘कहते हैं जिसको प्यार’, ‘अन्त का उजाला’ (नाटक); ‘अब्र क्या चीज़ है? हवा क्या है?’ आदि (डायरी); ‘टेकनीक इन द टेल्ज़ ऑफ़ हेनरी जेम्ज़’ (समीक्षा); अंग्रेज़ी में : ‘स्टेप्स इन डार्कनेस’ (उसका बचपन), ‘बिमल इन बॉग’ (बिमल उर्फ़ जाएँ तो जाएँ कहाँ), ‘डाइंग अलोन’ (दूसरा न कोई और दस कहानियाँ), ‘द ब्रोकन मिरर’ (गुज़रा हुआ ज़माना), ‘सायलेंस’ (चुनी हुई कहानियाँ), ‘फ़ायर इन बैली/आवर ओल्ड वुमन’ (भूख आग है/हमारी बुढिय़ा), ‘द स्कल्प्टर इन एक्ज़ाइल’ (चुनिन्दा कहानियाँ), ‘द डायरी ऑफ़ अ मेडसर्वेंट’ (एक नौकरानी की डायरी); हिन्दी में : ‘गॉडो के इन्तज़ार में’ (बैकिट), ‘आख़िरी खेल’ (बैकिट), ‘फ़ेड्रा’ (रासीन), ‘एलिस अजूबों की दुनिया में’ (लुईस कैरोल); अन्य लेखकों की कृतियों के अनुवाद : ‘डेज़ ऑफ़ लॉन्गिंग’ (निर्मल वर्मा का उपन्यास : ‘वे दिन’), ‘बिटर स्विट डिज़ायर’ (श्रीकान्त वर्मा का उपन्यास : ‘दूसरी बार’), ‘इन द डार्क’ (मुक्तिबोध की सुदीर्घ कविता : ‘अँधेरे में’)। इनके अलावा अनेक रचनाओं के अनुवाद बांग्ला, उर्दू, गुजराती, तमिल, मलयालम, मराठी, जर्मन, इतालवी, नॉर्वेजियन, स्वीडिश, पोलिश आदि भाषाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। निधन : 6 फरवरी, 2020
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