Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2019 |
ISBN-13 |
9789388933827 |
ISBN-10 |
9789388933827 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
564 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
690 |
मुकुन्द लाठ भारत के उन बहुत थोड़े लेखकों में से एक हैं जिनके यहाँ साहित्य और कलाओं को लेकर ऐसी गहरी और सूक्ष्म दृष्टि है जो प्राचीन साहित्य और शास्त्र, दर्शन और चिन्तन, संगीत और नाट्य, कविता, परम्परा और आधुनिकता आदि सबको एक संग्रथित समावेश में शामिल कर रूपायित होती रही है। वह परम्परा से जैसे कि आधुनिकता से भी अनाक्रान्त रहकर एक प्रश्नवाचक दूरी रखती है। साहित्य और कलाओं के स्वरूप पर ऐसा मौलिक चिन्तन, कुछ कृतियों की सूक्ष्म समीक्षा, हिन्दी में बहुत कम देखने को मिलता है। हिन्दी में पहले ऐसे लोग थे, जैसे कि वासुदेव शरण अग्रवाल, मोतीचन्द्र, हजारीप्रसाद द्विवेदी आदि, जो ऐसी समावेशी और आधुनिकता के लिए भेदक दृष्टि रखते थे। मुकुन्द लाठ उस परम्परा में ही दशकों से सक्रिय रहे हैं और उनकी यह संचयिता हम बहुत उत्साह और उम्मीद के साथ प्रस्तुत कर रहे हैं कि अपने समय, समाज, साहित्य और कलाओं को समझने की यह दृष्टि हिन्दी के विचार-जगत् में हस्तक्षेप की तरह पहचानी-गुनी जायेगी। यह निश्चय ही हिन्दी की विचार-सम्पदा का अपेक्षाकृत अब तक का जाना विस्तार है।
Mukund Laath
जन्म: १९३७, कोलकाता में। शिक्षा के साथ संगीत में विशेष प्रवृत्ति थी जो बनी रही। आप पण्डित जसराज के शिष्य हैं। अँग्रेज़ी में बी.ए. (ऑनर्स), फिर संस्कृत में एम.ए. किया। पश्चिम बर्लिन गये और वहाँ संस्कृत के प्राचीन संगीत-ग्रन्थ दत्तिलम् का अनुवाद और विवेचन किया। भारत लौटकर इस काम को पूरा किया और इस पर पी.एच-डी. ली। १९७३ से १९९७ तक राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर, के भारतीय इतिहास एवं संस्कृत विभाग में रहे। भारतीय संगीत, नृत्त, नाट्य, कला, साहित्य सम्बन्धी चिन्तन और इतिहास पर हिन्दी-अँग्रेज़ी में लिखते रहे हैं। यशदेव शल्य के साथ दर्शन प्रतिष्ठान की प्रतिष्ठित पत्रिका उन्मीलन के सम्पादक और उसमें नियमित लेखन। प्रमुख प्रकाशन: ए स्टडी ऑफ दत्तिलम्, हाफ ए टेल (अर्धकथानक का अनुवाद), द हिन्दी पदावली ऑ$फ नामदेव (कालावार्त के सहलेखन में), ट्रान्सफॉरमेशन ऐज़ क्रिएशन, संगीत एवं चिंतन, स्वीकरण, तिर रही वन की गंध, धर्म-संकट, कर्म चेतना के आयाम, क्या है क्या नहीं है। एक कविता-संग्रह अनरहनी रहने दो के नाम से। प्रमुख सम्मान व पुरस्कार: पद्मश्री, शंकर पुरस्कार, नरेश मेहता वाङ्मय पुरस्कार, फेलो-संगीत नाट्य अकादेमी।.
Mukund Laath
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