Lohia : Ek Pramanik Jivani (Hindi)

Author:

Onkar Sharad

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2012
ISBN-13

9788180314070

ISBN-10 8180314073
Binding

Paperback

Edition 17th
Number of Pages 232 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22X14X2
Weight (grms) 266

डॉ. लोहिया के चालीस साल के राजनीतिक जीवन में कभी उन्हें सही मायने में नहीं समझा गया। जब देश ने उन्हें समझा, लोगों की उनके प्रति चाह बढ़ी और उनकी ओर आशा की निगाहों से देखना शुरू किया तो अचानक ही वे चले गए। हाँजाते-जाते अपना महत्त्व लोगों के दिलों में जमा गए। लोहिया का महत्त्वउन्हें गए इतना समय बीत गयादेश की राजनीति में कितना परिवर्तन आ गया, फिर भी आज नए सिरे से लोहिया की ज़रूरत महसूस की जा रही है। यह तो भावी इतिहास ही सिद्ध करेगा कि देश में आए आज के परिवर्तन में लोहिया की क्या भूमिका रही है। लगता है कि लोहिया ऐसे इतिहास-पुरुष हो गए हैंजैसे-जैसे दिन बीतेंगेउनका महत्त्व बढ़ता जाएगा। किसी लेखक ने ठीक ही लिखा है—“डॉ. राममनोहर लोहिया गंगा की पावन धारा थेजहाँ कोई भी बेहिचक डुबकी लगाकर मन और प्राण को ताज़ा कर सकता है।” एक हद तक यह बड़ी वास्तविक कल्पना है। सचमुच लोहिया जी गंगा की धारा ही थे—सदा वेग से बहते रहेबिना एक क्षण भी रुके, ठहरे। जब तक गंगा की धारा पहाड़ों में भटकतीटकराती रहीकिसी ने उसकी ओर ध्यान नहीं दियालेकिन जब मैदानी ढाल पर आकर वह तीव्र गति से बहने लगी तो उसकी तरंगोंउसके वेगउसके हाहाकार की ओर लोगों ने चकित होकर देखापर लोगों को मालूम न था कि उसका वेग इतना तीव्र कि समुद्र से मिलने में उसे अधिक समय न लगा। शायद उस वेगवती नदी को ख़ुद भी समुद्र के इतने पास होने का अन्दाज़ा न था। यह इस देश, समाज और आधुनिक राजनीति का दुर्भाग्य है कि वह महान चिन्तक इस संसार से इतनी जल्दी चला गया। यदि लोहिया कुछ वर्ष और ज़िन्दा रहते तो निश्चय ही सामाजिक चरित्र और समाज संगठन में कुछ नए मोड़ आते।—ओंकार शरद

Onkar Sharad

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