आधुनिक भारत में जो शीर्षस्थानीय दार्शनिक हुए हैं उनमें डा. दया कृष्ण का विशेष स्थान है। उन्होंने पश्चिमी दर्शन-शास्त्र के गहन अध्येता के रूप में शुरुआत की थी पर बाद में उन्होंने भारतीय दार्शनिक और बौद्धिक परम्परा में गहरी पैठ बनायी। उन्होंने अनेक भारतीय विचारों और सिद्धान्तों पर पुनर्विचार किया, कुछ का बदली परिस्थिति में पुनराविष्कार किया। उन्होंने निरी नयी व्याख्या से हटकर कई नयी जिज्ञासाएँ विन्यस्त कीं और कई पुराने प्रश्नों के नये उत्तर खोजने का दुस्साहस किया। सभ्यताओं और संस्कृतियों के बीच सम्बन्ध और अन्तर पर उन्होंने नयी गम्भीरता से विचार किया और उन्हें लेकर इतिहास-लेखन के लिए कुछ मौलिक प्रस्तावना की। हिन्दी में निरन्तर क्षीण हो गयी विचार-परम्परा में यह हिन्दी अनुवाद समृद्ध विस्तार करेगा ऐसी आशा है।
Daya Krishna
दया कृष्ण
दया कृष्ण (१९२४-२००७) भारत के प्रमुख दार्शनिकों में एक थे। निरन्तर प्रश्नाकुलता के कारण उनको भारत का सुकरात कहा जाता था। उनकी रचनात्मकता अनेक क्षेत्रों में मुखर हुई, जो उनकी पुस्तकों के शीर्षकों से भी झलकती है। दया जी की पुस्तकों में प्रमुख हैं : ‘द नेचर ऑफ फिलॉसॉफी, पोलिटिकल डेवलपमेंट, पश्चिमी दर्शन का इतिहास, सोशल फिलॉसॉफी : पास्ट एण्ड फ्यूचर, द आर्ट ऑफ कन्सेप्चुअल मैझ ओवर थ्री डेकेड्स, प्रोलेगोमेना टू एनी फ्यूचर हिस्टीरियोग्राफी ऑफ कल्चर्स एण्ड सिविलाइज़ेशंस, और सिविलाइज़ेशंस : नोस्टेल्ज्यिा एण्ड यूटोपिया, टुवर्ड्स ए थ्योरी ऑफ स्ट्रक्चरल एण्ड ट्रांसेडेंटल इल्युज़ंस।
अपने जीवन के उत्तर-काल में दया जी के लेखन ने भारतीय दर्शन को लेकर अनेक महत्त्वपूर्ण सवाल खड़े किये। दया जी ने तीन दशकों तक भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद् की पत्रिका का सम्पादन किया; सम्पादक के रूप में वे उस पत्रिका में ‘नोट्स एण्ड क्वेरीज’ खण्ड का लेखन करते थे। उनके प्रमुख लेखों में शामिल हैं : आर्ट एण्ड द मिस्टिक कांशसनेस; टाइम ट्रुथ एण्ड ट्रांसेडेंस; द कांसेप्ट ऑफ रेवोलुशन : ऐन अनालिसिस।
Daya Krishna
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd