Doosra Paksh

Author:

Taslima Nasreen

Publisher:

VANI PRAKSHAN

Rs233 Rs299 22% OFF

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Publisher

VANI PRAKSHAN

Publication Year 2020
ISBN-13

9789388684071

ISBN-10 9789388684071
Binding

Paperback

Number of Pages 164 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 21.5x13x1
Weight (grms) 216
धर्म परिवर्तन करने का अधिकार सबको होना चाहिए। शिशु किसी धार्मिक विश्वास के साथ पैदा नहीं होता। उस पर उसके माँ-पिता का धर्म लाद दिया जाता है। सभी बच्चे विवश होकर अपने माँ-पिता के धर्म को ही अपना धर्म मान लेते हैं। अच्छा तो यह होता कि बच्चे के बड़े होने पर, उसके समझदार होने पर उसे पृथ्वी के समस्त धर्मों के बारे में बताया जाता, और फिर वह अपनी इच्छा और विवेक से अपने धर्म का चयन करता अथवा अनिच्छा होने पर नहीं करता। जब राजनीति में दीक्षित होने के लिए बालिग होना ज़रूरी है, तो धर्म से जुड़ने के लिए भी ऐसा कोई प्रावधान होना चाहिए। आज न तो पहले की तरह साम्प्रदायिक दंगे होते हैं, न ही मृतकों का आँकड़ा पहले जितना होता है। आज के लोग जानते हैं कि लड़कियों से बदसलूकी करना गैर-कानूनी है। कन्या भ्रूण-हत्या की घटनाओं की लोग आज निन्दा करते हैं। समाज में एक समय सवर्णों का अत्याचार काफ़ी होता था, अब इन पर काफ़ी हद तक अंकुश लगा है। कई बार ऐसे मामले सामने आते हैं, तो दोषियों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई होती है। कुल मिलाकर, आज का भारत मानवाधिकार, महिला अधिकार, समता और समानाधिकार में यकीन करता है। यह परिवर्तन एक दिन में नहीं आया है। यह दशकों के संघर्ष का परिणाम है। भारत में भी कट्टरवादी हिन्दुओं में यह चिन्ता घर कर रही है कि हिन्दू धर्म और संस्कृति कहीं ख़त्म न हो जाये। उनकी आशंका यह भी है कि मुस्लिम कट्टरवाद या इस्लाम ही हिन्दू धर्म की विलुप्ति का कारण होगा। इसलिए धर्म को बचाये रखने के लिए हिन्दू कट्टरवादी भी उसी रास्ते पर चलने का संकेत दे रहे हैं, जिस रास्ते पर मुस्लिम कट्टरवादी पहले ही चल पड़े हैं। भारत में तर्कवादियों को निशाना बनाने की यही वजह है।

Taslima Nasreen

तसलीमा नसरीन तसलीमा नसरीन ने अनगिनत पुरस्कार और सम्मान अर्जित किए हैं, जिनमें शामिल हैं-मुक्त चिन्तन के लिए यूरोपीय संसद द्वारा प्रदत्त-सखारव पुरस्कार; सहिष्णुता और शान्ति प्रचार के लिए यूनेस्को पुरस्कार; फ्रांस सरकार द्वारा मानवाधिकार पुरस्कार; धार्मिक आतंकवाद के ख़िलाफ़ संघर्ष के लिए फ्रांस का एडिट द नान्त पुरस्कार; स्वीडन लेखक संघ का टूखोलस्की पुरस्कार; जर्मनी की मानववादी संस्था का अर्विन फिशर पुरस्कार; संयुक्त राष्ट्र का फ्रीडम नाम रिलिजन फाउण्डेशन से फ्री थॉट हीरोइन पुरस्कार और बेल्जियम के मेंट विश्वविद्यालय से सम्मानित डॉक्टरेट! वे अमेरिका की ह्युमैनिस्ट अकादमी की ह्यूमैनिस्ट लॉरिएट हैं। भारत में दो बार, अपने ‘निर्वाचित कलाम' और 'मेरे बचपन के दिन' के लिए वे ‘आनन्द पुरस्कार' से सम्मानित। तसलीमा की पस्तकें अंग्रेज़ी, फ्रेंच, इतालवी, स्पैनिश. जर्मन समेत दुनिया की तीस भाषाओं में अनूदित हुई हैं। मानववाद, मानवाधिकार, नारी-स्वाधीनता और नास्तिकता जैसे विषयों पर दुनिया के अनगिनत विश्वविद्यालयों के अलावा, इन्होंने विश्वस्तरीय मंचों पर अपने बयान जारी किए हैं। 'अभिव्यक्ति के अधिकार' के समर्थन में, वे समूची दुनिया में, एक आन्दोलन का नाम बन चुकी हैं।
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