TRYMBAKAM YAJAMAHE

Author:

Mahendra Madhukar

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2020
ISBN-13

9789389577501

ISBN-10 9789389577501
Binding

Hardcover

Number of Pages 239 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22.5 X 14.5 X 2
शिव-चेतना का अनुभव एक अद्वैत अनुभव है। यह विरोधों में सामंजस्य की प्रवृत्ति है। यों कहें कि विरुद्ध को अनुकूल बनाने की दृष्टि है। हम जानते हैं कि मृत्यु एक बड़ी सच्चाई है पर फिर भी हम अमरत्व की कामना करते हैं। हम तो अमर नहीं हो सकते पर हमारा कर्म हमें अमर कर सकता है। परमात्मा के त्रिगुण रूपों में भगवान शिव परम अनुरक्त और परम विरक्त देवता हैं। इसलिए ये महादेव हैं, क्योंकि महान वही हो सकता है जो सभी स्थितियों में महान लगे। जो नीचे से ऊपर तक, बाहर से भीतर तक एक समान हो। शिव का 'कैलास' शिखर मन का प्रतीक है। महादेव शिव के लिए 'त्रयम्बकं यजामहे' कहकर उनका पूजन और सम्मान किया गया है। समस्त दिशाएँ उनके वस्त्र हैं, सजल मेघ उनके जटाजूट हैं, आकाश उनका दृप्त भाल, विद्युत् उनका तीसरा नेत्र और पृथ्वी उनकी रंगशाला है, जिसमें निरन्तर अणुओं का नृत्य (dancing atoms) चलता रहता है। शिव ज्ञान के, औषधि के, नृत्य और नाद के, जीवन और मृत्यु के, अमृत और विष के विलक्षण समन्वय हैं। शिव के बाएँ आधे भाग में पार्वती सुशोभित हैं, माथे पर आधा चन्द्रमा चमक रहा है। वे शिव के साथ मिलकर पूर्णत्व प्राप्त करते हैं। शिव स्वीकृति के देवता हैं। उनके लिए सभी ग्राह्य हैं। वहाँ निषेध के लिए अवकाश नहीं। उनके भक्त ताल-बेताल नाचें या गाएँ, मुँह से बम-बम का स्वर निकालें, गाल बजाएँ, उनके दरबार में सब जायज़ है। शिव-केन्द्रित इस उपन्यास के शिव भूत-प्रेत जैसे दिव्यांग जीवों के शरणदाता और पोषक हैं। वे बहुमुखी, बहुआयामी हैं, गायक, वादक, नर्तक, स्वयंभू, जीव और जन्तुओं के उद्धारक, महावीर, महादेव, अर्द्धनारीश्वर और लोकोपकारक हैं। उनका रोदन-रस ही रुद्राक्ष है। उनकी पार्वती स्त्री-शक्ति और पर्यावरण संरक्षा की प्रतिनिधि हैं। इस इकार रूपा शक्ति के अभाव में शिव भी शव रूप हो जाते हैं। उन पर केन्द्रित यह पौराणिक महाकाव्यात्मक उपन्यास, हमें आशा है, संसार को देखने की हमारी दृ‌ष्टि को विस्‍तृत करेगा।

Mahendra Madhukar

महेंद्र मधुकर जन्म : 2 जनवरी, 1940; सीतामढ़ी, बिहार। शिक्षा : एम.ए. (हिन्दी एवं संस्कृत), पीएच.डी., डी.लिट्.। बिहार विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में पूर्व प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष। प्रकाशित कृतियाँ : 'आषाढ़ के बादल', 'अस्वीकृत इन्द्रधनुष', 'आगे दूर तक मरुथल है', 'हरे हैं शाल वन', 'मुझे पसन्द है पृथ्वी', 'अब दिखेगा सूर्य', 'तमालपत्र', 'शिप्रावात', 'प्रतिपादा' (गीत-कविता); 'महादेवी की काव्य-चेतना', 'उपमा अलंकार : उद्भव और विकास', 'काव्यभाषा के सिद्धान्त', 'मेघदूत आज भी' आदि (आलोचना); 'माँगूँ सबसे बैर', 'बयान क़लमबंद' (व्यंग्य); 'पराशक्ति श्रीसीता और अवतरण भूमि : सीतामही', 'सीता परिणयम्', 'संस्कृत महाकाव्य', 'नया आलोचक', ‘अनासक्ति दर्शन’ (सम्पादन)। विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित। अनेक बार अमेरिका और यूरोप की यात्राएँ।
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