Yatrik

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RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

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Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 2007
ISBN-13

9788183611589

ISBN-10 9788183611589
Binding

Paperback

Number of Pages 104 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 21 X 14 X 2.5
Weight (grms) 300
कथाकार और उपन्यासकार के रूप में शिवानी की लेखनी ने स्तरीयता और लोकप्रियता की खाई को पाटते हुए एक नई जमीन बनाई थी जहाँ हर वर्ग और हर रुचि के पाठक सहज भाव से विचरण कर सकते थे । उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और सम्बन्धगत भावनाओं की इतने बारीक और महीन ढंग से पुनर्रचना की कि वे अपने समय में सबसे ज्यादा पड़े जाने वाले लेखकों में एक होकर रहीं । कहानी, उपन्यास के अलावा शिवानी ने संस्मरण और रेखाचित्र आदि विधाओं में भी बराबर लेखन किया । अपने संपर्क में आए व्यक्तियों को उन्होंने करीब से देखा, कभी लेखक की निगाह से तो कभी मनुष्य की निगाह से, और इस तरह उनके भरे-पूरे चित्रों को शब्दों में उकेरा और कलाकृति बना दिया । इस पुस्तक में वाग्देवी का अदूभुत वरदान हे विदेशिनी! हम तुम्‍हें पहचानते हैं, '.मुरलिया तू कौन गुमान भरी? : जो मिले सुर स्वर-लय नटिनी, के रहीम अब बिरछ करूं, माताहारी? नदी जो मरुस्थल में खो गई, स्वरलय नटिनी, ननिया ने हाय राम. एक थी रामरती, चिरस्‍थायी शेर वन्दन, दाना मियाँ? मत तोड़ो चटकाय परमतृप्‍ति जन्मदिन आदि संस्मरण और रेखाचित्र शामिल हैं । आशा है, शिवानी के कथा-साहित्य के पाठकों को उनकी ये रचनाएँ भी पसंद आएँगी ।
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