Publisher |
Vani Prakashan |
Publication Year |
2008 |
ISBN-13 |
8181437373 |
ISBN-10 |
8181437373 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
136 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20X14X4 |
Weight (grms) |
522 |
अज्ञेय की जीवन-यात्रा और काव्य-यात्रा आधुनिक हिन्दी कविता और आधुनिक भारत के भीतर के आवेगों और असंयत-संयत दोनों प्रकार के उबालों, समष्टि से व्यष्टि और व्यष्टि से समष्टि के उदय; स्वप्न भंग और स्वप्न भंग से जन्मे गहरे विषाद के सर्वस्वीकारी और सर्व समर्पित भाव में परिणमन; अपनी भाषाई और सांस्कृतिक अस्मिता की पहचान, अपनी जातीय लय की खोज, पश्चिमी शिक्षा के संस्कार को स्वीकार करते हुए भी अपनी जातीय स्वायत्तता, अपने अखंड भारतीय व्यक्तित्व के पाने के लिए अनेक मार्गों के अनुसंधान (कुछ भटकने के, कुछ सही दिशा में जाने के, कुछ खोने के कुछ पाने के, अंततः कुछ से कुछ और होने के लिए ये मार्ग तलाशे गए और एक के बाद एक त्यागे गए पर ये सभी मार्ग कहीं न कहीं हमारे व्यक्तित्व के अंग बने) का समवर्ती इतिहास है। अज्ञेय जन्म से लेकर वृद्ध तक यात्री रहे घुमक्कड़ यात्री नहीं, न कोरे सैलानी यात्राी; देश या विदेश में उन्होंने प्रकृति के मनोरम स्थलों की यात्रा इस भाव से की है जैसे प्रत्येक स्थल आनंदमयी चैतन्य सत्ता का साकार विग्रह है। वे देश-विदेश की तरह-तरह की मानव भंगिमाओं में कहीं कुछ गहरे सत्य का आलोक पाते थे पर यायावर होते हुए भी घर के बिना और घर की आशा के बिना।
Vidhya Niwas Mishra
Vani Prakashan