Publisher |
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD |
Publication Year |
2020 |
ISBN-13 |
9788183619745 |
ISBN-10 |
9788183619745 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
87 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
21 X 14 X 2.5 |
Weight (grms) |
90 |
मध्यकालीन भारत के जिस दौर में गुरु गोरखनाथ का व्यक्तित्व सामने आया, वह विभिन्न सामाजिक और नैतिक चुनौतियों के सामने एक असहाय और दिग्भ्रमित दौर था। ब्राह्मणवाद और वर्ण-व्यवस्था की कठोरता अपने चरम पर थी, आध्यात्मिक क्षेत्र में समाज को भटकानेवाली रहस्यवादी शक्तियों का बोलाबाला था। इस घटाटोप में गोरक्षनाथ जिन्हें हम गोरखनाथ के नाम से ज्यादा जानते हैं, एक नई सामाजिक और धार्मिक समझ के साथ सामने आए। वे हठयोगी थे। योग और कर्म दोनों में उन्होंने सामाजिक अन्याय और धार्मिक अनाचार का स्पष्ट और दृढ़ प्रतिरोध किया। वज्रयानी बौद्ध साधकों की अभिचार-प्रणाली और कपालिकों की विकृत साधनाओं पर उन्होंने अपने आचार-व्यवहार से निर्णायक प्रहार किए और अपनी काव्यात्मक अभिव्यक्तियों से समाज को चेताने का कार्य किया। मन्दिर और मस्जिद के भेद, उच्च व निम्न वर्णों के बीच स्वीकृत अन्याय, अनाचार तथा सच्चे गुरु की आवश्यकता और आत्म की खोज को विषय बनाकर उन्होंने लगातार काव्य-रचना की। इस पुस्तक में उनके br>चयनित पदों को व्याख्या सहित प्रस्तुत किया गया है ताकि पाठक गोरख की न्याय-प्रणाली को सम्यक् रूप में आत्मसात् कर सकें। मध्यकालीन साहित्य के अध्येताओं के लिए प्रस्तुति विशेष उपयोगी है।.
Karuna Upadhyay
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD