Publisher |
LOKBHARTI PRAKASHAN |
Publication Year |
2010 |
ISBN-13 |
9788180314100 |
ISBN-10 |
9788180314100 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
118 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
573 |
प्रस्तुत काव्य संग्रह 'नील कुसुम में राष्ट्रकवि., रामधारी सिंह, दिनकर' की - सौन्दर्यन्वेशी वृत्ति काव्यमयी हो जाती है पर यह अंधेरे, में ध्येय सौंदर्य का अन्वेषण नहीं, उजाले में ज्ञेय सौंदर्य का आराधन है । कवि के स्वर का ओज नये वेग से. नये शिखर तक पहुँच जाता है । वह कव्यात्मक प्रयोगशीलता के प्रति आस्थावान 'है 1 स्वयं प्रयोगशील कवियों को जयमाल पहनाने और उनकी राह फूल बिछाने की आकांक्षा उसे विकल कर देती है। - नवीनतम काव्यधारा से संबंध स्थापित करने की कवि की इच्छा स्पष्ट हो जाती है । प्रस्तुत पुस्तक में पाठक कवि के भाषा प्रवाह, ओज अनुभूति की तीव्रता और अच्छी - संवेदना का अनुभव करेंगे ।
Ram Dhari Singh Dinkar
रामधारी सिंह 'दिनकर' (२३ सितंबर १९०८- २४ अप्रैल १९७४) हिन्दी के एक प्रमुख लेखक, कवि व निबन्धकार थे। वे आधुनिक युग के श्रेष्ठ वीर रस के कवि के रूप में स्थापित हैं। बिहार प्रान्त के बेगुसराय जिले का सिमरिया घाट उनकी जन्मस्थली है। उन्होंने इतिहास, दर्शनशास्त्र और राजनीति विज्ञान की पढ़ाई पटना विश्वविद्यालय से की। उन्होंने संस्कृत, बांग्ला, अंग्रेजी और उर्दू का गहन अध्ययन किया था। 'दिनकर' स्वतन्त्रता पूर्व एक विद्रोही कवि के रूप में स्थापित हुए और स्वतन्त्रता के बाद राष्ट्रकवि के नाम से जाने गये। वे छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के कवि थे। एक ओर उनकी कविताओ में ओज, विद्रोह, आक्रोश और क्रान्ति की पुकार है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति है। इन्हीं दो प्रवृत्तियों का चरम उत्कर्ष हमें उनकी कुरुक्षेत्र और उर्वशी नामक कृतियों में मिलता है। उर्वशी को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार जबकि कुरुक्षेत्र को विश्व के १०० सर्वश्रेष्ठ काव्यों में ७४वाँ स्थान दिया गया।
Ram Dhari Singh Dinkar
LOKBHARTI PRAKASHAN