Bhartrihari Kavita Ka Paras Patthar

Author:

Sudhir Ranjan Singh

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs251 Rs295 15% OFF

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2019
ISBN-13

9788126710416

ISBN-10 9788126710416
Binding

Hardcover

Number of Pages 136 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 310
ऋषियों की नैतिक दृढ़ता, कालिदास, भारवि और माघ की ऐन्द्रिकता और लालित्य, और भक्त कवियों की तन्मयता, और इन सबके साथ ही मानवीय अन्तर्विरोधों की गहरी पकड़-इतना कुछ एक कवि में और वह भी एकश्लोकीय कविता के द्वारा, यह अचंभित करनेवाली बात है। भर्तृहरि क्लासिकी संस्कृत कविता की परम्परा के साथ भी हैं और उससे हटकर भी। इसलिए उनका अस्तित्व किसी एक व्यक्ति के रूप में भले न दिखाई पड़े और पहचान राजा और योगी जैसे कई व्यक्तियों के रूप में क्यों न होती रही हो, इस तथ्य को अनदेखा नहीं किया जा सकता कि हमारे यहाँ कविता की एक विशेष परम्परा रही थी जिसे भर्तृहरि नामक व्यक्ति से जोड़े बगैर खुद कविता का व्यक्तित्व मुखर नहीं होता होगा। भर्तृहरि सुभाषितों के कवि हैं-एकश्लोकीय कविता के कवि। जिन अनुभूतियों ने भर्तृहरि को सबसे अधिक संचालित किया है, उनमें आवेग का निर्णायक महत्त्व है। कोसम्बी ने भर्तृहरि की दांते और गोएथे से तुलना करते हुए कुछ महत्त्वपूर्ण किन्तु विवाद योग्य निष्कर्ष निकाले हैं। वह कहते हैं कि दांते का निर्वासन उनकी नागरिक मान्यताओं के प्रति अटल विश्वास के कारण था। इसी के वजन पर भर्तृहरि के लिए कहा जा सकता है कि उनका वैराग्य कोरा आत्मनिर्वासन नहीं है, उसके पीछे उनकी सामाजिक स्वतंत्रता की भावना और उस पर अटल विश्वास है। उसका अपने समय की राजनीतिक, आर्थिक बनावट से तीखा विरोध है। पराजय का स्वीकार द तक नहीं है भर्तृहरि में। काल अथवा मृत्यु का स्वीकार अवश्य है। भर्तृहरि की कविता का महत्त्व समूची मानवजाति के लिए तो है ही, सबसे बढ़कर उसका महत्त्व हमारे कवियों के लिए है। विषय से भटके हुए हम जैसे कवियों के लिए भर्तृहरि की कविताएँ विषय हैं; और इस उलझन-भरे समय में सुलझी हुई दृष्टि हैं।.

Sudhir Ranjan Singh

Born: October 28, 1960 सुधीर रंजन सिंह जन्म: 28 अक्टूबर, 1960 कविता-संग्रह: और कुछ नहीं तो और मोक्षधरा। काव्य-अनुरचना: भर्तृहरि: कविता का पारस पत्थर। आलोचना: हिन्दी समुदाय और राष्ट्रवाद, कविता के प्रस्थान और कविता की समझ। वृत्तान्त: भारिया: पातालकोट का जीवन-छन्द। सम्पादन: अद्यतन हिन्दी आलोचना और आर.पी. नरोन्हा की पुस्तक अ टेल टोल्ड बाई एन इडियट का हिन्दी अनुवाद एक अनाड़ी की कही कहानी।
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