Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2015 |
ISBN-13 |
9788126700356 |
ISBN-10 |
9788126700356 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
267 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
419 |
आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी ने साहित्यिक इतिहास-लेखन को पहली बार 'पूर्ववर्ती व्यक्तिवादी इतिहास-प्रणाली के स्थान पर सामाजिक अथवा जातीय एतिहासिक प्रणाली' का दृढ वैज्ञानिक आधार प्रदान किया ! उनका प्रस्तुत ग्रन्थ इसी दृष्टि से हिंदी का अत्यधिक महत्तपूर्ण साहित्येतिहास है ! यह कृति मूलतः विद्यार्थियों को दृष्टि में रखकर लिखी गई है ! प्रयत्न किया गया है कि यथासंभव सुबोध भाषा में साहित्य की विभिन्न प्रवृत्तियों और उसके महत्तपूर्ण बाह्य रूपों के मूल और वास्तविक स्वरुप का स्पष्ट परिचय दे दिया जाए ! परन्तु पुस्तक के संशिप्त कलेवर के समय ध्यान रखा गया है कि मुख्य प्रवृतियों का विवेचन छूटने न पाए और विद्यार्थी अद्यावधिक शोध-कार्यों के परिणाम से अपरिचित न रह जाएँ ! उन अनावश्यक अटकलबाजियो और अप्रासंगिक विवेचनाओं को समझाने का प्रयत्न तो किया गया है, पर बहुत अधिक नाम गिनाने की मनोवृत्ति से बचने का भी प्रयास है ! इससे बहुत से लेखको के नाम छूट गए हैं, पर साहित्य की प्रमुख प्रवृत्तियां नहीं छूटी हैं ! साहित्य के विद्यार्थियों और जिज्ञासुओं के लिए एक अत्यंत उपयोगी पुस्तक !
Hazari Prasad Dwivedi
बचपन का नाम: बैजनाथ द्विवेदी।
जन्म: श्रावणशुक्ल एकादशी सम्वत् 1964 (1907 ई.)। जन्म-स्थान: आरत दुबे का छपरा, ओझवलिया, बलिया (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा: संस्कृत महाविद्यालय, काशी में। 1929 में संस्कृत साहित्य में शास्त्री और 1930 में ज्योतिष विषय लेकर शास्त्राचार्य की उपाधि।8 नवम्बर, 1930 को हिन्दी शिक्षक के रूप में शान्तिनिकेतन में कार्यारम्भ; वहीं 1930 से 1950 तक अध्यापन; सन् 1950 में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक और हिन्दी विभागाध्यक्ष; सन् 1960-67 में पंजाब विश्वविद्यालय, चंडीगढ़ में हिन्दी प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष; 1967 के बाद पुनः काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में; कुछ दिनों तक रैक्टर पद पर भी।
Hazari Prasad Dwivedi
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd