प्रभा त ने अपने विशिष्ट लेखकीय साहस के साथस्वी की सिर्फ बाहरी नहीं, उसकी निहायत निजी, आन्तरिक और गोपनीय परतों को भी अपनी रचनाओं में खोला है। उनके यहाँ पुरानी औरत खुद अपने हाथों से अपना सिर काटने वाली और फीनिक्स की तरह पुनः-पुन: अपनी ही आग से एक नये रूप में जन्म लेने वाली औरत होती है । पीली आँधी में तीन-तीन पीढियों की औरतें हैं जो कोई सौ-डेढ़ सौ साल की यात्रा करते हुए, अपनी-अपनी बात कहते हुए हमारे आज तक पहुँचती हैं। शिक्षा, निरन्तर परिवर्तनशील परिवेश के दबाव और बंगाल की सामाजिक जागरुकता के बीच प्रभा त अपने जीवन का चुनाव स्वयं, अपनी तरह से करना चाहती है-वह स्वयं अपने आर्थिक स्रोतों की खोज करती है और इस प्रक्रिया में भयावह मानसिक-त रूणान्तरणों से दो-चार होती है। नईं-नईं चुनौतियों की रचना करने और उन्हें साहसपूर्वक झेंलनेवाली इसी औरत की अक्कासी इस उपन्यास में है ।.
Prabha Khetan
"प्रभा खेतान
जन्म : 1 नवम्बर, 1942
शिक्षा : एम.ए., पी-एच.डी. (दर्शनशास्त्र)।
प्रकाशित कृतियाँ : आओ पेपे घर चलें!, छिन्नमस्ता, पीली आँधी, अग्निसंभवा, तालाबंदी, अपने-अपने चेहरे (उपन्यास); अपरिचित उजाले, सीढ़ियाँ चढ़ती हुई मैं, एक और आकाश की खोज में, कृष्ण धर्मा मैं, हुस्न बानो और अन्य कविताएँ अहल्या (कविता); उपनिवेश में स्त्री, सार्त्र का अस्तित्ववाद, शब्दों का मसीहा : सार्त्र, अल्बेयर कामू : वह पहला आदमी (चिन्तन); साँकलों में कैद कुछ क्षितिज (कुछ दक्षिण अफ्रीकी कविताएँ), स्त्री : उपेक्षिता (सीमोन द बोउवार की विश्व-प्रसिद्ध कृति द सेकंड सेक्स) (अनुवाद)। एक और पहचान, हंस का स्त्री विशेषांक भूमंडलीकरण : पितृसत्ता के नये रूप (सम्पादन)।
निधन : 20 सितम्बर, 2008"
Prabha Khetan
LOKBHARTI PRAKASHAN