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Publisher | RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD |
Publication Year | 2022 |
ISBN-13 | 9788171193172 |
ISBN-10 | 817119317X |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 102 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 21 X 14 X 1 |
मानव जीवन को प्राणवायु देनेवाले वृक्षों के बारे में हमारी पीढ़ी की जानकारी निरन्तर सीमित होती जा रही है। हमारे आसपास के प्राकृतिक परिवेश में ऋतु-चक्र के अनुसार न जाने कितने ही प्रकार के वृक्ष फलते-फूलते हैं लेकिन आधुनिक जीवन की आपाधापी में फँसी हमारी जीवनचर्या उनके जादुई संस्पर्श से वंचित रह जाती है। कैसी विडम्बना है कि मानव जीवन को सौन्दर्यानुभूति से भर देनेवाली हमारी वृक्ष-सम्पदा दिन-अनुदिन उपेक्षित होती जा रही है। हमारी तथाकथित विकास योजनाओं का पहला प्रहार वृक्षों और वन-सम्पदा को ही झेलना पड़ता है। कैसा दुर्भाग्य है कि अमलतास की टहनियों ने कब चटक पीले झुमके पहन लिए? शाल्मली और टेसू की शाखों पर ये सुर्ख़ अंगार जैसी लाली कहाँ से आ गई? मौलश्री और पारिजात के वृक्ष कब से अपनी मादक गन्ध हवा में घोल रहे हैं और हरसिंगार ने वसुधा पर कैसी सुन्दर फूलों की गन्धमान चादर बिछा दी है, हम जान ही नहीं पाते। अरुकेरिया, मनीप्लांट और बसाई को ड्राइंगरूम की शोभा माननेवाली आधुनिक संस्कृति के एकांगी दृष्टिकोण के कारण भारतीय मूल के अगणित वृक्ष निरन्तर उपेक्षित हो रहे हैं। वे वृक्ष जिनके इर्द-गिर्द हमारा बचपन बीता है, जिनके चारों ओर धागे बाँधती हमारी दादी-नानी परिक्रमा लगाती थीं, जिनकी मृदु छाया में श्रीकृष्ण वंशी बजाते थे, सीता ने अपना निर्वासित जीवन जिया और गौतमबुद्ध को बोधिसत्व प्राप्त हुआ। ऐसे वृक्षों के बारे में प्रामाणिक जानकारी इस पुस्तक में सँजोई गई है। सरल एवं लालित्यपूर्ण भाषा में लिखी इस पुस्तक की आकर्षित करनेवाली एक विशिष्टता यह भी है कि विदुषी लेखिका ने सांस्कृतिक, साहित्यिक, आयुर्वेदिक एवं लोकमानस में समाई किंवदन्तियों के सहारे भारतीय मूल के सोलह विशिष्ट वृक्षों के बारे में जो विस्तृत जानकारी इस पुस्तक में जुटाई है, वह सम्भवत: हिन्दी में अपनी तरह का एक नूतन प्रयास है। पर्यावरण की चिन्ता करनेवाले जागरूक मानस और भारत-भूमि की अमित उर्वरा शक्ति और सुवास से आह्लादित होनेवाले पाठकों के लिए यह पुस्तक एक प्रीतिकर अनुभव सिद्ध होगी।
Pratibha Arya
RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD