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Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2022 |
ISBN-13 | 9789394902244 |
ISBN-10 | 9394902244 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 174 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 22 X 14.5 X 1.5 |
शाश्वत सत्य यह था कि आदिवासी जंगल की सन्तान हैं। मगर वस्तुस्थिति यह थी कि उनमें से किसी के पास भी जंगल की जमीन का कोई पट्टा नहीं लिखा था। न ही उनमें इतनी समझ थी कि उस जमीन को अपने नाम लिखाकर रखें। अपने पूर्वजों की तरह वह उस जमीन पर खेती करते थे। जंगल से जीवन यापन करते थे। लेकिन साठ के दशक में अचानक वन अधिकारी नए नियम-कायदों की लाठी से लैस होकर वहाँ घुस गए। आदिवासियों को चूल्हे में जलाने के लिए, जंगलों की सूखी लकड़ियाँ बीनने तक से रोका जाने लगा। उनके भेड़-बकरियों को जंगल में चराने पर रोक लगा दी गई। आदिवासी स्तब्ध रह गए कि यह क्या! जहाँ वे अपना हक समझते थे, पीढ़ी-दर-पीढ़ी जिन जंगलों में रहते थे, वहाँ किसका राज आ गया।
Vishwas Patil
,Ravi Buley
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd