Bundelkhand ka Svatantrata Sangarsha

Author:

B.K. Shrivastava

Publisher:

DK Print World Ltd

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Publisher

DK Print World Ltd

Publication Year 2020
ISBN-13

9788124610206

ISBN-10 8124610207
Binding

Paperback

Number of Pages 289 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 600
प्रस्तुत पुस्तक के द्वारा भारत के स्वतंत्रता संघर्ष में बुन्देलखण्ड की जनता के योगदान को सामने लाने का प्रयास किया गया है। गांधीजी की बुन्देलखण्ड यात्रा एवं ओरछा के समीप सतार नदी के किनारे चन्द्रशेखर आजाद के हरिशंकर ब्रह्मचारी के नाम से कुटिया बनाकर रहने से समस्त बुन्देलखण्ड में तेजी से राष्ट्रवादी भावनाओं का प्रसार हुआ। 1923 के झण्डा सत्याग्रह एवं 1930 के जंगल सत्याग्रह में बुन्देलखण्ड के लोगों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया। ब्रिटिश भक्त देशी रियासत के राजाओं ने जब जनता पर अत्याचार किया तो जनता ने प्रजामण्डल की स्थापना कर उनका विरोध किया। इसी विरोध के फलस्वरूप संक्रांति के मेले के दिन 14 जनवरी 1931 को छतरपुर जिले में जलियाॅवाला बाग की तरह ही चरण-पादुका हत्याकाण्ड घटित हुआ। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने कर्मवीर समाचार पत्र के माध्यम से 1920 में रतौना में खोले जाने वाले कसाई खाने का इतना प्रखर विरोध किया कि सरकार को घबराकर अपनी कसाईखाना खोलने की योजना त्यागनी पड़ी। यह एक ओर बुन्देलखण्ड की धरती पर अंग्रेजों की करारी शिकस्त थी, तो दूसरी ओर पं. माखनलाल चतुर्वेदी की पत्रकारिता की महत्वपूर्ण जीत थी। सागर के भाई अब्दुलगनी, ज्वाला प्रसाद ज्योतिषी, केशवराव खाण्डेकर एवं मास्टर बलदेव प्रसाद, दमोह के भैयालाल चैधरी, अजयगढ़ पन्ना के चंदीदीन चैरहा, छतरपुर के पं. रामसहाय तिवारी, टीकमगढ़ के लालाराम वाजपेयी एवं झांसी के भगवानदास माहौर आदि ने बुन्देलखण्ड के स्वतंत्रता संघर्ष को गति, दिशा एवं अर्थ प्रदान किया। इन्हें पं. द्वारका प्रसाद मिश्र एवं पं. सुन्दरलाल तपस्वी का कुशल नेतृत्व एवं मार्गदर्शन मिला। गोवा मुक्ति आन्दोलन में भी सागर की सहोद्राराय एवं केसरी चन्द मेहता सहित अनेक सत्याग्रहियों ने गोवा जाकर आन्दोलन को सफल बनाया। उक्त सभी घटनाक्रम की रोचक, सहज, सरल, सुबोध एवं तथ्यपरक जानकारी इस पुस्तक में दी गई है। छात्रों, शोधार्थियों, शिक्षक बन्धुओं सहित प्रत्येक वर्ग के लोगों को यह पुस्तक ज्ञानवर्धक एवं रुचिकर लगेगी।

B.K. Shrivastava

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