Availability: Available
Shipping-Time: Usually Ships 1-3 Days
0.0 / 5
Publisher | VANI PRAKSHAN |
Publication Year | 2024 |
ISBN-13 | 9789362871046 |
ISBN-10 | 9362871041 |
Binding | Paperback |
Number of Pages | 268 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 23 X 14 X 4 |
Weight (grms) | 400 |
हमारे देश की गंगा-जमुनी तहज़ीब पारस्परिक मेल-जोल का अनूठा उदाहरण रही है हालाँकि असहिष्णुता की भावना के चलते रंग, भाषा, त्योहार, खान-पान, वेशभूषा आदि को धर्म विशेष से जोड़कर लोगों को बाँटने के प्रयास हमेशा से किये जाते रहे हैं। एक साहित्यकार का यह दायित्व बनता है कि वह समाज को जोड़ने का काम करे पर समाज में व्याप्त असहिष्णुता साहित्य पर भी हावी होती जा रही है। भाषा आपस में जोड़ने का माध्यम है पर इसे भी बाँटने के लिए इस्तेमाल किया जाता रहा है। ग़ज़ल लिखने में हिन्दी शब्दों से और हिन्दी कविता या गीत में उर्दू शब्दों से परहेज़ किया जाता है।साहित्य को न केवल समाज का दर्पण होना चाहिए बल्कि समाज के अधिकांश लोगों के लिए होना चाहिए। कठिन भाषा के प्रयोग से साहित्य अलंकृत तो हो सकता है पर इसकी पहुँच आम आदमी तक नहीं हो पाती। दुष्यन्त कुमार ने अपनी ग़ज़लों के माध्यम से एक परम्परा शुरू तो की थी पर यह इक्का-दुक्का लेखकों तक ही सीमित रही है। जब तक हिन्दी और उर्दू अपने आभिजात्य आवरण और एक-दूसरे पर अपनी श्रेष्ठता दिखाने के प्रयासों को छोड़कर आम आदमी की सरल भाषा का प्रयोग नहीं अपनायेंगी तब तक उस गंगा-जमुनी तहज़ीब से दूरी बढ़ती रहेगी और साहित्य पर अंग्रेज़ी भाषा का प्रभुत्व बढ़ता चलेगा।मेरी शिक्षा और जीवन-यात्रा में उर्दू भाषा को पढ़ने-सीखने के अवसर बहुत कम रहे पर ग़ज़ल और नज़्म के प्रति मेरे लगाव के चलते मुझे पिछले कुछ वर्षों में थोड़ी-बहुत उर्दू पढ़ने-लिखने का मौक़ा मिला। सो मेरी हिन्दी और उर्दू भाषा की पकड़ लगभग उतनी ही है जितनी उत्तर भारत के एक आम आदमी की हो सकती है। ग़ज़ल में हिन्दी शब्दों का प्रयोग भले ही नयी बात न हो पर दोहे में आम बोलचाल में इस्तेमाल उर्दू शब्दों का प्रयोग एक नवीन प्रयोग है।आशा है कि आप सभी के माध्यम से मेरा ये दो किताबों का जोड़ा, जिसमें ग़ज़ल-संग्रह ‘मैं बहर में हूँ’ और दोहा-संग्रह ‘दोहे मोहे सोहे’ शामिल हैं, गंगा-जमुनी तहज़ीब को बचाये रखने में मेरा एक छोटा-सा प्रयास साबित होगा।
Sunil Atolia 'Kalu'
VANI PRAKSHAN