Patan

Author:

Ravindra Kant Tyagi

Publisher:

Prabhat Prakashan

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Publisher

Prabhat Prakashan

Publication Year 2022
ISBN-13

9789355212016

ISBN-10 9789355212016
Binding

Paperback

Number of Pages 360 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 400
उपन्यास "पतन' एक कहानी के साथ- साथ भारत की राजनीति में घटनेवाली बड़ी घटनाओं को सही समय और काल के साथ व प्रामाणिकता के साथ प्रस्तुत करता है। देश के राजनीतिक पटल पर बदलते दृश्यों को लेकर लेखक के रूप में मेरी एक राय हो सकती है, एक दृष्टिकोण हो सकता है, किंतु घटनाओं के तथ्य, काल, चाल और चरित्र को हू-ब-हू प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। फिर चाहे वह 1975 की इमरजेंसी के भीतर का सच हो, जनता पार्टी की सतबेझडी हाँड़ी का फूटकर बिखरना उसकी स्वाभाविक परिणति हो, इंदिरा गांधी के द्वारा जनता पार्टी को तोड़ने का सफल षड़्यंत्र हो, मंडल आयोग के कारण पूरे देश के उपद्रव हों, लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा हो, नरसिम्हा राव का हवाला हो, अटल बिहारी की सरकार का बहुमत साबित न कर पाने के कारण तेरह दिन में और फिर तेरह महीने में सत्ता से बेदखल होना हो या छह साल के सफल नेतृत्व के बाद भी अटल सरकार को जनता के द्वारा नकारकर आर्थिक घोटालों के कारण चर्चा में रहे सोनिया गांधी के नेतृत्ववाली मनमोहन सरकार की स्वीकार्यता के दस वर्ष हों। उपन्यास पतन में स्वतंत्र भारत में नेहरू- काल के बाद के इतिहास की नकारात्मकता और सकारात्मकता को उल्लेखित किया गया है। 'पतन' में एकात्म मानवतावाद, साम्यवाद, समाजवाद और नक्सलवाद को गहन चिंतन और वार्त्ताओं के माध्यम से खँगालने का भी सफल प्रयास किया गया है।

Ravindra Kant Tyagi

"रवींद्र कांत त्यागी - जन्म : 12 सितंबर, 1953 को जोधपुर (राजस्थान) में । कभी पुश्तैनी खेती में हाथ आजमाए तो कभी नैसर्गिक गुणसूत्र के प्रतिकूल छोटे-मोटे व्यापार किए। कभी रंगमंच पर अभिनय, कभी पर्यावरण संरक्षण। एक राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टी के साथ जुड़कर संभाषण, मंच-संचालन, मीडिया प्रबंधन और चुनाव संचालन के दायित्वों का निर्वहन किया। दायित्वों के बोझ ने पाँव में इतने छाले डाले, सिद्धांतों पप अडिग रहकर रोटी के संघर्ष ने और जिंदा रहने की जुस्तजू में इतने थपेड़े झेलने पड़े कि अंतर्मन में अभिव्यक्ति का सागर हिलोरें लेने लगा। एक ओर जीवन का संघर्ष और दूसरी ओर समानांतर रूप से बहती प्रेम की सुवासित बयार ने हृदय का इतना मंथन किया कि कहानियाँ बह निकलीं। मधुर प्रेम और अनुराग की कहानियाँ। बिछोह और विरह की कहानियाँ। भूख से ऐंठ रहे पेट की आँतों को प्रतिहिंसा के विष से शांत करने की और विकास में पिछड़ गए लोगों के हाथों में हथियार थमा देने की कहानियाँ। रोती- बिलखती, चीत्कार करती कहानियाँ। घात- प्रतिघात, आवेश और प्रतिशोध की कहानियाँ। मानव मन की गहन परतों को उलटकर भीतर झाँकती कहानियाँ तथा राजनीति की शह और मात की कहानियाँ। 'विषदंता', “प्रतिघात', “गोश्तखोर ', “लंपट ', 'लकड़ी के लोग' आदि कहानी-संग्रह; 'चौमासा', 'वंशबेल में दंश', 'पिघलती मिट्टी ', 'क्षितिज के आगे', “मुआवजा' तथा आपके हाथों में 'पतन' आदि उपन्यास |"
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