Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2019 |
ISBN-13 |
9788171788644 |
ISBN-10 |
9788171788644 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
128 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
128 |
आधुनिकता की दृष्टि से हिन्दी कविता, कहानी, उपन्यास और नाटक की यह शायद पहली परख है। यह परख हो भी सकती है या नहीं? इस सवाल को जगह-जगह उठाया गया है। आधुनिकता का बोध क्या है, इसे अनेक दृष्टियों से पहचानने की कोशिश की गई है। क्या इसे देश की कसौटी पर परखना संगत है या काल की कसौटी पर या देश-काल दोनों की कसौटी पर? क्या इसे ऐतिहासिक दृष्टि से आँकना सही है? क्या इसमें निरन्तरता को खोजा और पाया जा सकता है या अनिरन्तरता को? निरन्तरता किसकी या अनिरन्तरता किसकी? क्या आधुनिकता की प्रक्रिया के एक से अधिक दौर कविता, कहानी आदि में आए हैं? यदि आए हैं तो किस तरह, कैसे और कहाँ? इसकी शुरुआत कहाँ से होती है? आधुनिकता की प्रक्रिया और नगरीकरण की प्रक्रिया में क्या परस्पर सम्बन्ध है या आधुनिकता-बोध और नगर-बोध में क्या आपसी सम्बन्ध है? आधुनिकता और आधुनिकतावाद में क्या अन्तर है? क्या रचना-विशेष के अन्त:बोध के आधार पर आधुनिकता की पहचान हो सकती है? पाश्चात्य साहित्य में आधुनिकता की परख कहाँ तक संगत है? इस तरह के पेचीदा सवालों के जवाब कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक में पाना बेहतर होगा। आलोचक को यह भी लगा है कि मात्र आधुनिकता के बोध से कृति न तो कभी बनी है और न ही बन सकती है। इसलिए जिन रचनाओं को आधुनिकता की पहचान के लिए आधार बनाया गया है, उनका कृति होना लाज़मी नहीं है।
Indranath Madan
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd