Aadivasi Kaun

Author:

Ramnika Foundation

Publisher:

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

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Publisher

RADHAKRISHAN PRAKASHAN PVT. LTD

Publication Year 2019
ISBN-13

9788183612197

ISBN-10 9788183612197
Binding

Hardcover

Number of Pages 204 Pages
Language (Hindi)
Weight (grms) 381
N.A.

Ramnika Foundation

जन्म: 22 अप्रैल, 1930, सुनाम (पंजाब)। शिक्षा: एम.एम., बी.एड.। बिहार/झारख्ंाड की पूर्व विधायक पूर्व विधान परिषद् की पूर्व सदस्या। कई गैर-सरकारी एवं स्वयंसेवी संस्थाओं से सम्बद्ध तथा सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनैतिक कार्यक्रमों में सहभागिता। आदिवासी और दलित महिलाओं-बच्चों के लिए कार्यरत। कई देशों की यात्राएँ। सम्मानों एवं पुरस्कारों से सम्मानित। प्रकाशित कृतियाँ: आदिवासी: विकास से विस्थापन, आदिवासी: साहित्य यात्रा, भीड़ सतर में चलने लगी है, तुम कौन, तिल-तिल नूतन, मैं आजाद हुई हँू, अब मूरख नहीं बनेंगे हम, भला मैं कैसे मरती, आदम से आदमी तक, विज्ञापन बनता कवि, कैसे करोगे बँटवारा इतिहास का, प्रकृति युद्धरत है, पूर्वांचल: एक कविता-यात्रा, आम आदमी के लिए, खँूटे, अब और तब, गीत-अगीत (काव्य-संग्रह); सीता, मौसी (उपन्यास); बहू-जुठाई (कहानी-संग्रह); स्त्री विमर्श: कलम और कुदाल के बहाने, दलित हस्तक्षेप, निज घरे परदेसी, साम्प्रदायिकता के बदलते चेहरे, दलित-चेतना: साहित्यिक और सामाजिक सरोकार, दक्षिण-वाम के कटघरे और दलित-साहित्य, असम नरसंहार - एक रपट, राष्ट्रीय एकता, विघटन के बीज (गद्य-पुस्तकें); इसके इलावा छः काव्य-संग्रह, चार कहानी-संग्रह एवं पाँच विभिन्न भाषाआंे के साहित्य की प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन सम्पादित। शरणकुमार लिंबाले की पुस्तक दलित साहित्य का सौंदर्यशास्त्र का मराठी से हिन्दी में अनुवाद। इनके अपने उपन्यास मौसी का अनुवाद तेलुगू में पिन्नी नाम से और पंजाबी में मासी नाम से हो चुका है। सम्प्रति: सन् 1985 से युद्धरत आम आदमी (त्रैमासिक हिन्दी पत्रिका) का सम्पादन। प्रमुख पंपलेट्स: लिसन अनार्किस्ट। एन अपील टू द यंग। अनार्किज्म इट्स फिलॉसोफी एंड आईडियाज। मृत्यु: 8 फरवरी, 1921। प्रारम्भिक दिनों सक ही उनकी रुचि रूस की आर्थिक और राजनीतिक परिस्थितियों की ओर थी। विद्यार्थी जीवन में ही वे अपनी साम्यवादी विचारधारा के कारण जेल गए। रूस और जर्मनी के बीच हुए युद्ध का उन्होंने जर्मनी के समर्थन में प्रबल विरोध किया और आजीवन रचनाधर्मिता से जुड़े रहे। यायावरों की तरह वे देश-विदेश की यात्राएँ करते रहे।.
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