जब सांस्कृतिक राष्ट्रवाद और थोथी देशभक्ति के जुमले उछालकर जेएनयू को बदनाम किया जा रहा था, तब वहाँ छात्रों और अध्यापकों द्वारा राष्ट्रवाद को लेकर बहस शुरू की गई। खुले में होने वाली ये बहस राष्ट्रवाद पर कक्षाओं में तब्दील होती गई, जिनमें जेएनयू के प्राध्यापकों के अलावा अनेक रचनाकारों और जन-आन्दोलनकारियों ने राष्ट्रवाद पर व्याख्यान दिए। इन व्याख्यानों में राष्ट्रवाद के स्वरूप, इतिहास और समकालीन सन्दर्भों के साथ उसके खतरे भी बताए-समझाए गए।
Ravikant
"रविकान्त
जन्म : 25 जून, 1979; गाँव—जगम्मनपुर, ज़िला—जालौन, बुन्देलखंड, (उत्तर प्रदेश)।
शिक्षा : जेएनयू से हिन्दी साहित्य में एम.ए., एम.फिल्., लखनऊ विश्वविद्यालय से पीएच.डी.।
रचनात्मक सक्रियता : 'आलोचना और समाज', 'आज़ादी और राष्ट्रवाद' पुस्तकों का सम्पादन। 'अदहन' पत्रिका का सम्पादन। प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अनेक लेख, शोधालेख एवं कविताएँ प्रकाशित।
दूरदर्शन से कई साहित्यिक आयोजन प्रसारित; समाचार चैनलों पर बहस में दलित चिन्तक और राजनीतिक विश्लेषक के रूप में नियमित सहभागिता; अंक विचार मंच, लखनऊ के माध्यम से साहित्यिक और सामाजिक उत्थान के कार्यक्रमों का नियमित संचालन; साहित्य अकादेमी के ‘ग्रामालोक’ कार्यक्रम का संयोजन; संस्थापक ‘अंक फ़ाउंडेशन’, लखनऊ।
सम्प्रति : सहायक प्रोफ़ेसर, हिन्दी विभाग, लखनऊ विश्वविद्यालय, लखनऊ।"
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