Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
1990 |
ISBN-13 |
9788126703654 |
ISBN-10 |
9788126703654 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
257 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
22 x 14 x 1.5 |
Weight (grms) |
1000 |
डॉ. रामविलास शर्मा की यह मूल्यवान आलोचनात्मक कृति भारोपीय साहित्य और समाज में क्रियाशील आस्था और सौंदर्य की अवधारणाओं का व्यापक विश्लेषण करती है। इस सन्दर्भ में रामविलास जी के इस कथन को रेखांकित किया जाना चाहिए कि अनास्था और संदेहवाद साहित्य का कोई दार्शनिक मूल्य नहीं है, बल्कि वह यथार्थ जगत की सत्ता और मानव-संस्कृति के दीर्घकालीन अर्जित मूल्यों के अस्वीकार का ही प्रयास है। उनकी स्थापना है कि साहित्य और यथार्थ जगत का संबंध सदा से अभिन्न है और कलाकार जिस सौंदर्य की सृष्टि करता है, वह किसी समाज-निरपेक्ष व्यक्ति की कल्पना की उपज न होकर विकासमान सामाजिक जीवन से उसके घनिष्ठ संबंध का परिणाम है। रामविलास जी की इस कृति का पहला संस्करण 1961 में हुआ था। इस संस्करण में दो नए निबंध शामिल हैं। एक गिरिजाकुमार माथुर की काव्ययात्रा के पुनर्मूल्यांकन और दूसरा फ्रांस की राज्यक्रान्ति तथा मानवजाति के सांस्कृतिक विकास की समस्या को लेकर। इस विस्तृत निबंध में लेखक ने दो महत्त्वपूर्ण सवालों पर खासतौर से विचार किया है कि क्या मानवजाति के सांस्कृतिक विकास के लिए क्रांति आवश्यक है और फ्रांस ही नहीं, रूस की समाजवादी क्रांति भी क्या इसके लिए जरूरी थी? कहना न होगा कि समाजवादी देशों की वर्तमान उथल-पुथल के संदर्भ में इन सवालों का आज एक विशिष्ट महत्त्व है। संक्षेप में, यह एक ऐसी विवेचनात्मक कृति है जो किसी भी सौंदर्य-सृष्टि की समाज-निरपेक्षता का खंडन करते हुए उसके सामाजिक-सांस्कृतिक संबंधों और आस्थावादी मूल्यों का तलस्पर्शी उद्घाटन करती है।
Late Dr. Ram Vilas Sharma
जन्म: 10 अक्टूबर, 1912; ग्राम—ऊँचगाँव सानी, जिला—उन्नाव (उत्तर प्रदेश)। शिक्षा: 1932 में बी.ए., 1934 में एम.ए. (अंग्रेजी), 1938 में पीएच.डी. (लखनऊ विश्वविद्यालय)। लखनऊ विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग में पाँच वर्ष तक अध्यापन-कार्य किया। सन् 1943 से 1971 तक आगरा के बलवन्त राजपूत कॉलेज में अंग्रेजी विभाग के अध्यक्ष रहे। बाद में आगरा विश्वविद्यालय के कुलपति के अनुरोध पर के.एम. हिन्दी संस्थान के निदेशक का कार्यभार स्वीकार किया और 1974 में अवकाश लिया। सन् 1949 से 1953 तक रामविलासजी अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के महामंत्री रहे। देशभक्ति तथा माक्र्सवादी चेतना रामविलास जी की आलोचना का केन्द्र-बिन्दु हैं। उनकी लेखनी से वाल्मीकि तथा कालिदास से लेकर मुक्तिबोध तक की रचनाओं का मूल्यांकन प्रगतिवादी चेतना के आधार पर हुआ। उन्हें न केवल प्रगति-विरोधी हिन्दी-आलोचना की कला एवं साहित्य-विषयक भ्रान्तियों के निवारण का श्रेय है, वरन् स्वयं प्रगतिवादी आलोचना द्वारा उत्पन्न अन्तर्विरोधों के उन्मूलन का गौरव भी प्राप्त है। सम्मान: केन्द्रीय साहित्य अकादेमी का पुरस्कार तथा हिन्दी अकादेमी, दिल्ली का शताब्दी सम्मान। निधन: 30 मई, 2000.
Late Dr. Ram Vilas Sharma
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd