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Author :

Suryakant Tripathi 'Nirala'

Publisher:

LOKBHARTI PRAKASHAN

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Publisher

LOKBHARTI PRAKASHAN

Publication Year 2015
ISBN-13

9788180319495

ISBN-10 8180319490
Binding

Hardcover

Number of Pages 95 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 21 X 14 X 1

पंडित नन्ददुलारे वाजपयी ने लिखा है कि हिन्‍दी में सबसे कठिन विषय निराला का काव्य-विकास है। इसका कारण यह है कि उनकी संवेदना एक साथ अनेक स्तरों पर संचरण ही नहीं करती थी, प्रायः एक संवेदना दूसरी संवेदना से उलझी हुई भी होती थी। इसका सबसे बढ़िया उदहारण उनका 'अणिमा' नमक कविता-संग्रह है।


इसमें छायावादी सौन्‍दर्य-स्वप्न को औदात्य प्रदान करनेवाला गीत 'नुपुर के सुर मन्‍द रहे, जब न चरण स्वच्छन्‍द रहे' जैसे आध्यात्मिक गीत हैं, तो 'गहन है यह अन्‍धकरा' जैसे राष्ट्रीय गीत भी। इसी तरह इसमें 'स्नेह-निर्झर बह गया है' जैसे वस्तुपरक गीत भी। कुछ कविताओं में निराला ने छायावादी सौन्‍दर्य-स्वप्न को एकदम मिटाकर नए कठोर यथार्थ को हमारे सामने रखा है, उदाहरणार्थ—'यह है बाज़ार', 'सड़क के किनारे दूकान है', 'चूँकि यहाँ दाना है' आदि कविताएँ। 'जलाशय के किनारे कुहरी थी' प्रकृति का यथार्थ चित्रण करनेवाला एक ऐसा विलक्षण सानेट है, जो छन्‍द नहीं; लय के सहारे चलता है ।


उपर्युक्त गीतों और कविताओं से अलग 'अणिमा' में कई कविताएँ ऐसी हैं जो वर्णात्मक हैं, यथा—'उद्बोधन', 'स्फटिक-शिला' और 'स्वामी प्रेमानन्‍द जी महाराज', ये कविताएँ वस्‍तुपरक भी हैं और आत्मपरक भी। लेकिन इनकी असली विशेषता यह है कि इनमें निराला ने मुक्त-छन्‍द का प्रयोग किया है जिसमें छन्‍द और गद्य दोनों का आनन्‍ददायक उत्कर्ष देखने को मिलता है।


आज का युग दलितोत्थान का युग है। निराला ने 1942 में ही 'अणिमा' के सानेट—'सन्‍त कवि रविदास जी के प्रति'—की अन्तिम पंक्तियों में कहा


था : 'छुआ परस भी नहीं तुमने, रहे/कर्म के अभ्यास में, अविरल बहे/ज्ञान-गंगा में, समुज्ज्वल चर्मकार, चरण छूकर कर रहा मैं नमस्कार’।  


—नंदकिशोर नवल

Suryakant Tripathi 'Nirala'

सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’निराला का जन्म वसन्त पंचमी, 1896 को बंगाल के मेदिनीपुर ज़िले के महिषादल नामक देशी राज्य में हुआ। निवास उत्तर प्रदेश के उन्नाव ज़ि‍ले के गढ़ा कोला गाँव में। शिक्षा हाईस्कूल तक ही हो पाई। हिन्दी, बांग्ला, अंग्रेज़ी और संस्कृत का ज्ञान उन्होंने अपने अध्यवसाय से स्वतंत्र रूप में अर्जित किया। प्राय: 1918 से 1922 ई. तक निराला महिषादल राज्य की सेवा में रहे, उसके बाद से सम्पादन, स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। 1922-23 ई. में ‘समन्वय’ (कोलकाता) का सम्पादन। 1923 ई. के अगस्त से ‘मतवाला’ मंडल में। कलकत्ता छोड़ा तो लखनऊ आए, जहाँ गंगा पुस्तकमाला कार्यालय और वहाँ से निकलनेवाली मासिक पत्रिका ‘सुधा’ से 1935 ई. के मध्य तक सम्बद्ध रहे। प्राय: 1940 ई. तक लखनऊ में। 1942-43 ई. से स्थायी रूप से इलाहाबाद में रहकर मृत्यु-पर्यन्त स्वतंत्र लेखन और अनुवाद-कार्य। पहली प्रकाशित कविता : जन्मभूमि (‘प्रभा’, मासिक, कानपुर; जून 1920)। पहली प्रकाशित पुस्तक : अनामिका (1923 ई.)। प्रमुख कृतियाँ : आराधना, गीतिका, अपरा, परिमल, गीतगुंज, तुलसीदास, कुकुरमुत्ता, बेला, अर्चना, नए पत्ते, अणिमा, रागविराग, सांध्य काकली, असंकलित रचनाएँ (कविता-संग्रह); बिल्लेसुर बकरिहा, अप्सरा, अलका, कुल्लीभाट, प्रभावती, निरुपमा, चोटी की पकड़, भक्त ध्रुव, भक्त प्रहलाद, महाराणा प्रताप, भीष्म पितामह, चमेली, काले कारनामे, इन्दुलेखा (अपूर्ण) (उपन्यास); सुकुल की बीवी, लिली, चतुरी चमार, महाभारत, सम्पूर्ण कहानियाँ (कहानी-संग्रह); प्रबन्ध प्रतिमा, प्रबन्ध पद्म, चयन, चाबुक, संग्रह (निबन्ध-संग्रह); दो शरण, निराला संचयन, निराला रचनावली (सम्पूर्ण साहित्य)। निधन : 15 अक्टूबर, 1961
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