Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2016 |
ISBN-13 |
9788126717811 |
ISBN-10 |
9788126717811 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
124 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
272 |
व्योमेश शुक्ल के यहाँ राजनीति कुछ तेवर या अमर्षपूर्ण वक्तव्य लेकर ही नहीं आती बल्कि उनके पास पोलिंग बूथ के वे दृश्य हैं जहाँ भारतीय चुनावी राजनीति अपने सबसे नंगे, षडयंत्रपूर्ण और खतरनाक रूप में प्रत्यक्ष होती है । वहाँ संघियों और संघ-विरोधियों के बीच टकराव है, फर्जी वोट डालने की सरेआम प्रथा है, यहाँ कभी भी चाकू और लाठी चल सकते हैं लेकिन कुछ ऐसे निर्भीक, प्रतिबद्ध लोग भी हैं जो पूरी तैयारी से आते हैं और हर साम्यदायिक धाँधली रोकना चाहते हैं । ' बूथ पर लड़ना ' शायद हिंदी की पहली कविता है जो इतने ईमानदार कार्यकर्ताओं की बात करती है जिनसे खुद उनकी ' सेकुलर ' पार्टियों के नेता आजिज आ जाते हैं, फिर भी वे हैं कि अपनी लड़ाई लड़ते रहने की तरकीबें सोचते रहते हैं । ऐसा ही इरादा और उम्मीद ' बाइस हजार की संख्या बाइस हजार से बहुत बड़ी होती है ' में है जिसमें भूतपूर्व कुलपति और गांधीवादी अर्थशास्त्र के बीहड़ अध्येता दूधनाथ चतुर्वेदी को लोकसभा का कांग्रेस का टिकट मिलता है किंतु समूचे देश की राजनीति इस 75 वर्षीय आदर्शवादी प्रत्याशी के इतने विरुद्ध है कि चतुर्वेदी छठवें स्थान पर बाइस हजार वोट जुटाकर अपनी जमानत जब्त करवा बैठते हैं और बाकी बची प्रचार सामग्री का हिसाब करने बैठ जाते हैं तथा कविता की अंतिम पंक्तियाँ यह मार्मिक, स्निग्ध, सकारात्मक नैतिक ' एसर्शन, करती हैं ' कि बाइस हजार एक ऐसी संख्या है 7 जो कभी भी बाइस हजार से कम नहीं होती ' । व्योमेश की ऐसी राजनीतिक कविताएँ लगातार भूलने के खिलाफ खड़ी हुई हैं और वे एक भागीदार सक्रियतावादी और चश्मदीद गवाह की रचनाएँ हैं जिनमें त्रासद प्रतिबद्धता, आशा और एक करुणापूर्ण संकल्प हमेशा मौजूद हैं ।... .यहाँ यह संकेत भी दे दिया जाना चाहिए कि व्योमेश शुक्ल की धोखादेह ढंग से अलग चलने वाली कविताओं में राजनीति कैसे और कब आ जाएगी, या बिल्कुल मासूम और असम्बद्ध दिखने वाली रचना में पूरा एक भूमिगत राजनीतिक पाठ पैठा हुआ है, यह बतलाना आसान नहीं है ।.. .ये वे कविताएँ हैं जो ' एजेंडा ', ' पोलेमिक ' और कला की तिहरी शर्तो पर खरी उतरती हैं ।
Vyomesh Shukla
25 जून, 1980; वाराणसी में जन्म। यहीं बचपन और एम.ए. तक पढ़ाई। शहर के जीवन, अतीत, भूगोल और दिक़्क़तों पर एकाग्र निबन्धों और प्रतिक्रियाओं के साथ लिखने की शुरुआत। व्योमेश ने इराक़ पर हुई अमेरिकी ज़्यादतियों के बारे में मशहूर अमेरिकी पत्रकार इलियट वाइनबर्गर की किताब व्हाट आई हर्ड अबाउट ईराक़ का हिन्दी अनुवाद किया, जिसे हिन्दी की प्रतिष्ठित पत्रिका पहल ने एक पुस्तिका के तौर पर प्रकाशित किया है। व्योमेश ने विश्व-साहित्य से नॉम चोमस्की, हार्वर्ड ज़िन, रेमंड विलियम्स, टेरी इगल्टन, एडवर्ड सईद और भारतीय वाङ्मय से महाश्वेता देवी और के. सच्चिदानंदन के लेखन का भी अंग्रेज़ी से हिन्दी में अनुवाद किया है। व्योमेश शुक्ल का पहला कविता-संग्रह 2009 में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हुआ, जिसका नाम है ‘फिर भी कुछ लोग’। कविताओं के लिए 2008 में ‘अंकुर मिश्र स्मृति पुरस्कार’ और 2009 में ‘भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार’। आलोचनात्मक लेखन के लिए 2011 में ‘रज़ा फाउंडेशन फ़ेलोशिप’ और संस्कृति-कर्म के लिए भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता का ‘जनकल्याण सम्मान’ मिला है। नाटकों के निर्देशन के लिए इन्हें संगीत नाटक अकादेमी का ‘उस्ताद बिस्मिल्लाह ख़ाँ युवा पुरस्कार’ दिया गया है। व्योमेश की कविताओं के अनुवाद विभिन्न भारतीय भाषाओं के साथ-साथ कुछ विदेशी भाषाओं में हुए हैं। अंग्रेज़ी अख़बार इंडियन एक्सप्रेस ने अपने एक सर्वेक्षण में इन्हें देश के दस श्रेष्ठ लेखकों में शामिल किया है तो हिन्दी साप्ताहिक इंडिया टुडे ने भारत के सामाजिक-सांस्कृतिक दृश्यालेख में परिवर्तन करनेवाली पैंतीस शख़्सियतों में जगह दी है। लेखन के साथ-साथ व्योमेश बनारस में रहकर रूपवाणी नामक एक रंगसमूह का संचालन करते हैं। ‘काजल लगाना भूलना’ उनका दूसरा कविता-संग्रह है।.
Vyomesh Shukla
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd