सोलह से पच्चीस की अवस्था में मनुष्य का मन एक तो श्रद्धाशील बन जाता है या बुद्धिवादी बन जाता है। बहुत सारे लोग समझौतावादी बन जाते हैं। इसीलिए अन्धविश्वास का त्याग करने के जरूरी प्रयास कॉलेजों के युवक-युवतियों में ही होने चाहिए। क्षण-प्रतिक्षण तांत्रिक, गुरु अथवा ईश्वर के पास जाने की आदत बन गई कि पुरुषार्थ खत्म हो जाता यह उन्हें समझना चाहिए या समझाना पड़़ेगा। भारतीय जनमानस और देश को लग चुका अन्धविश्वास का यह खग्रास ग्रहण श्री नरेन्द्र्र दाभोलकर जी के प्रयासों से थोड़ा-बहुत भी कम हो गया तो भी लाभप्रद हो सकता है। वैज्ञानिक खोजबीन अपनी चरमसीमा को छू रही है। ऐसे दौर में अन्धविश्वासों का चश्मा आँखों पर लगाकर लडख़ड़ाते कदम उठाने में कौन सी अक्लमन्दी है?
Narendra Dabholkar
. नरेंद्र दाभोलकर एम.बी.बी.एस. की पढ़ाई कर चुके डॉ. नरेंद्र दाभोलकर ने सन् 1982 में अंधविश्वास उन्मूलन कार्य का प्रारंभ किया। 1989 में ‘महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति’ की स्थापना की। आजन्म समिति के कार्याध्यक्ष रहे। अंधविश्वास उन्मूलन विषय पर दर्जन-भर पुस्तकों का लेखन किया। पुस्तकों को अनेक पुरस्कार मिले। 20 अगस्त, 2013 को अज्ञात तत्त्वों द्वारा गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई। मरणोपरांत भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से सम्मानित किए गए। डॉ. सुनीलकुमार लवटे मराठी तथा हिंदी के साहित्यिक समीक्षक, अनुवादक एवं संपादक। महावीर महाविद्यालय, कोल्हापुर (महाराष्ट्र) के भूतपूर्व हिंदी विभागाध्यक्ष एवं प्राचार्य। केंद्रीय हिंदी निदेशालय, नई दिल्ली द्वारा दो बार पुरस्कृत। महाराष्ट्र राज्य हिंदी साहित्य अकादेमी, मुंबई द्वारा पद्मश्री अनंत गोपाल शेवडे़ हिंदी सेवा पुरस्कार एवं महाराष्ट्र भारती राष्ट्रीय जीवन गौरव पुरस्कार से सम्मानित। डॉ. प्रकाश अभिमन्यु कांबले जन्म: 31 मई, 1984; सोलापुर (महाराष्ट्र)। शिक्षा: एम.ए.,बी.एड.,पीएच.डी.। मराठी से हिंदी में अनुवाद और शोध आलेख प्रकाशित। संप्रति: जैन डिम्ड विश्वविद्यालय, बेंगलुरु में असिस्टेंट प्रोफेसर।
Narendra Dabholkar
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