यह पुस्तक लड़कियों के मानस पर डाली जाने वाली सामाजिक छाप की जांच करती है ! वैसे तो छोटी लड़की को बच्ची कहने का चलन है, पर उसके दैनंदिन जीवन की छानबीन ही यह बता सकती है कि लड़कियों के सन्दर्भ में 'बचपन' शब्द की व्यंजनाएँ क्या हैं ! कृष्ण कुमार ने इन व्यंजनाओं की टोह लेने के लिए डॉ परिधियाँ चुनी हैं ! पहली परिधि है घर के सन्दर्भ में परिवार और बिरादरी द्वारा किए जाने वाले समाजीकरण की ! इस परिधि की जांच संस्कृति के उन कठोर और पीने औजारों पर केन्द्रित है जिनके इस्तेमाल से लड़की को समाज द्वारा स्वीकृत औरत के सांचे में ढाला जाता है ! दूसरी परिधि है शिक्षा की जहाँ स्कूल और राज्य अपने सीमित दृष्टिकोण और संकोची इरादे के भीतर रहकर लड़की को एक शिक्षित नागरिक बनाते हैं ! लड़कियों का संघर्ष इन डॉ परिधियों के भीतर और इनके बीच बची जगहों पर बचपन भर जारी रहता है ! यह पुस्तक इसी संघर्ष की वैचारिक चित्रमाला है !
Krishana Kumar
दिल्ली विश्वविद्यालय में शिक्षा के प्रोफेसर हैं और राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद के निदेशक रह चुके हैं । उन्हें लन्दन विशवविद्यालय के इंस्टीटूयूट आँफ एजूकेशन ने डी.लिट. की उपाधि प्रदान को है । 2011 में उन्हें 'पत्मश्री’ प्रदान की गई । शिक्षा सम्बन्धी लेखन के अलावा वह कहानियाँ, निबन्थ और संस्मरण भी लिखते हैं । उनकी अनेक पुस्तकें अंग्रेजी में हैं । कृष्ण कुमार बच्चों के लिए भी लिखते हैं । कृष्ण कुमार की हिन्दी में प्रकाशित पुस्तकें शिक्षा सम्बन्धी पुस्तकें: राज, समाज और शिक्षा; शिक्षा और जान; शैक्षिक जान और वर्चस्व; बच्चों की भाषा और अध्यापक; दीवार का इस्तेमाल; मेरा देश तुम्हारा देश । कहानी और संस्मरण: नीली आँखों वाले बगुले, अब्दुल पलीद का छुरा, त्रिकाल दर्शन । निबन्थ और समीक्षा: विचार का डर, स्कूल की हिन्दी, शान्ति का भमर, सपनों का पेड़, रघुवीर सहाय रीडर । बाल साहित्य: आज नहीं पदूँगा, महके सारी गली गली (स्व. निरंकार देव सेवक के साथ सम्पादित), पूडियों की गठरी ।.
Krishana Kumar
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd