Raghuvir Sahay
शिक्षा: लखनऊ विश्वविद्यालय से 1951 में अंग्रेजी साहित्य में एम.ए.। समाचार जगत में ‘नवजीवन’ (लखनऊ) से आरम्भ करके पहले समाचार विभाग, आकाशवाणी, नई दिल्ली में और फिर ‘नवभारत टाइम्स’ नई दिल्ली में विशेष संवाददाता और अनंतर 1979 से 1982 तक ‘दिनमान’ समाचार साप्ताहिक के प्रधान सम्पादक रहे। उसके बाद अपने अन्तिम दिनों तक स्वतंत्र लेखन करते रहे। 1988 में भारतीय प्रेस परिषद के सदस्य मनोनीत। साहित्य के क्षेत्र में प्रतीक (दिल्ली), कल्पना (हैदराबाद) और वाक् (दिल्ली) के सम्पादक-मंडल में रहे। कविताएँ दूसरा सप्तक (1951), सीढ़ियों पर धूप में (1960), आत्महत्या के विरुद्ध (1967), हँसो, हँसो जल्दी हँसो (1975), लोग भूल गए हैं (1982) और कुछ पते कुछ चिट्ठियाँ (1989) में संकलित हैं। कहानियाँ सीढ़ियों पर धूप में, रास्ता इधर से है (1972) और जो आदमी हम बना रहे हैं (1983) में और निबंध सीढ़ियों पर धूप में, दिल्ली मेरा परदेस (1976), लिखने का कारण (1978), ऊबे हुए सुखी और वे और नहीं होंगे जो मारे जाएँगे (1983) में उपलब्ध हैं। इसके अलावा कई नाटकों और उपन्यासों के अनुवाद भी किए हैं। सम्पूर्ण रचनाकर्म रघुवीर सहाय रचनावली में प्रस्तुत है। ‘लोग भूल गए हैं’ को 1984 का राष्ट्रीय साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। मरणोपरांत हंगरी के सर्वोच्च राष्ट्रीय सम्मान, बिहार सरकार के राजेन्द्र प्रसाद शिखर सम्मान और आचार्य नरेन्द्रदेव सम्मान से उन्हें सम्मानित किया गया। देहान्त: 30 दिसम्बर, 1990.
Raghuvir Sahay
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