Publisher |
VANI PRAKSHAN |
Publication Year |
2020 |
ISBN-13 |
9789389563559 |
ISBN-10 |
9789389563559 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
504 Pages |
Language |
(Hindi) |
अहिंसा का सामान्य अर्थ है-'हिंसा न करना' । लेकिन व्यापक अर्थों में किसी भी प्राणी को मन, वचन, कर्म और वाणी से नुकसान न पहुँचाना ही अहिंसा है। मनुष्य को एकमात्र वस्तु जो पशु से भिन्न करती है वह है अहिंसा। व्यक्ति हिंसक है तो फिर वह पशुवत् है। मानव होने के लिए पहली शर्त है अहिंसा का भाव होना। महात्मा बुद्ध, महावीर, महात्मा गाँधी जैसे चिन्तकों ने अहिंसा को परम धर्म माना है। भारतीय दर्शन में कहा गया है कि अहिंसा की साधना से बैर भाव का लोप हो जाता है। बैर भाव के निकल जाने से काम, क्रोध आदि वृत्तियों का निरोध होता है। मन में शान्ति और आनन्द का भाव आता है इसलिए सभी को मित्रवत समझने की दृष्टि बढ़ जाती है, सही और ग़लत में भेद करने की क्षमता बढ़ जाती है। यह सब कुछ मन में शान्ति लाता है। विश्व में अहिंसा को जीवन और समाज के सभी क्षेत्रों में स्थापित करना एक महत्त्वपूर्ण चुनौती बन गयी है, इस चुनौती को गाँधी ने स्वीकार किया और उन्होंने अहिंसक साधनों से सत्य की सिद्धि करने का प्रयास किया। व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय और अन्तरराष्ट्रीय क्षितिज पर विकराल होती समस्याओं का समाधान अहिंसा में निहित है जो आत्म कष्ट सहन करने तथा प्रेम को व्यापक करने से ही सम्भव हो सकता है। सत्याग्रह की सैद्धान्तिक व्याख्या में इतिहास के तथ्य तो आते ही हैं, परम्परा और धार्मिक सन्दर्भ से भी हम दृष्टि पाते हैं। गाँधी की अनुपम देन यही थी कि उन्होंने व्यक्तिगत आचार नियमों को सामाजिक और सामूहिक प्रयोग का विषय बनाया।
Manoj Kumar
Amit Kumar Bishwas
Manoj Kumar
,Amit Kumar Bishwas
VANI PRAKSHAN