| Publisher |
LOKBHARTI PRAKASHAN |
| Publication Year |
2024 |
| ISBN-13 |
9788119996094 |
| ISBN-10 |
8119996097 |
| Binding |
Paperback |
| Number of Pages |
184 Pages |
| Language |
(Hindi) |
अंशु मालवीय की कविताओं का विषय-व्यास अनेक दिशाओं में फैला हुआ है। यूँ तो इस संग्रह का प्राथमिक स्वर राजनैतिक विद्रूपता का है पर दीगर स्वर भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं हैं। यहाँ भँवरी देवी, शाहबानो, मिथिलेश, सगुनाबाई आदि की शोषण-गाथाएँ हैं। वे स्त्रियाँ भी हैं जो निर्जला व्रत रखकर पसीना चुआते हुए काम कर रही हैं। शोहदों के कन्धों की रगड़ झेलते हुए काम पर जा रही हैं। वे जलती औरतें हैं जो धर्म के कारखाने में दिहाड़ी मजदूर थीं। अंशु की कविताओं में ‘दक्खिन टोला’ का दैनिक जीवन, वहाँ की संस्कृति, भाषा और सुख-दुख आम जन के दुखों से अलग एक दूसरी दुनिया के लगते हैं। वहाँ से गान नहीं रुदन उठता है। भाषा का अर्थ अपभ्रंश और बोली के माने अभंग है। संस्कारों की वृहद सूची में मेहनत के अलावा कोई संस्कार नहीं है। ये कविताएँ बताती हैं कि साम्प्रदायिकता और राजनीति के सम्बन्ध कितने अन्तर्गुम्फित हैं। ‘कौसर बानो की अजन्मी बिटिया की ओर से’ जैसी अमानुष और कलपाती हुई कविता हो या फिर ‘खून’, ‘गाय’ और ‘यूसुफ भाई’ जैसी कविताएँ। कोई जरूरी नहीं कि हर खेल लपटों की तरह ही दिखे, वह शान्त और अनुत्तेजक भी हो सकता है। ‘न कोई वीभत्स मुखौटा न नाखून, न खून के धब्बे... बस कोई दोस्त आपसे पूछ लेगा, तुम्हारा मजहब क्या है? और आपकी रीढ़ बर्फ की तरह ठंडी हो जाएगी।’ तुलसीदास का अपनी चौपाइयों, दोहों को नारा हो जाते देखना, एक पेड़ का वह एहसास है जो अपनी लकड़ियों से सलीब बनते देख रहा है। प्रेम और पारिवारिकता की इस संग्रह में भरपूर समाई हुई है। असमय चले गए पिता से कविता और राजनीति पर बहस करने की अपूर्ण इच्छा है। माँ-पिता के प्रणय पलों की सात्विकता है। वह गेहुँआ आलस्य है जो माँ बनने की प्रक्रिया में स्त्री देह पर छा जाता है। अंशु की कविता का यह एक छोर है, दूसरे छोर पर हो ची मिन्ह की दाढ़ी है जिसे वे वियतनाम के जंगल कहते हैं जिनमें साम्राज्यवादियों के सपने भटक जाते थे। अंशु मालवीय अपनी कर्मशील रचना-यात्रा में आज एक समादृत कवि के रूप में हमारे सामने हैं। खुशी की बात है कि वर्षों से अनुपलब्ध अंशु का ये चर्चित कविता-संग्रह पाठकों के बीच कविता के उसी तेवर के साथ दोबारा उपस्थित है जिसकी कमी की बात बार-बार की जाती रही है। —हरीश चन्द्र पाण्डे
Anshu Malviya
अंशु मालवीय अंशु मालवीय का जन्म 12 जुलाई, 1971 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातक किया है। तक़रीबन पैंतीस वर्षों से सामाजिक-सांस्कृतिक कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। शहरी ग़रीबों एवं असंगठित कामगारों की मज़दूरी और आवास के मुद्दों पर विशेष रूप से काम किया। साम्प्रदायिकता, जाति और जेंडर के मुद्दों पर कार्यशालाएँ और सांस्कृतिक हस्तक्षेप। उनकी प्रकाशित कृतियाँ हैं—‘दक्खिन टोला’, ‘तिनगोड़वा’, ‘ये दुःख नहीं है तथागत’ (कविता-संग्रह); ‘नार्को टेस्ट’ (लम्बी कविता); ‘शहर और सपना’ (शहरी ग़रीबी और झोपड़पट्टियों का अध्ययन)। इसके अतिरिक्त शहरी ग़रीबी एवं आवास और भोजन के अधिकार पर दस पुस्तिकाएँ भी प्रकाशित हैं।
Anshu Malviya
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