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Publisher | Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year | 2017 |
ISBN-13 | 9788126730568 |
ISBN-10 | 8126730560 |
Binding | Hardcover |
Number of Pages | 152 Pages |
Language | (Hindi) |
Dimensions (Cms) | 20 x 14 x 4 |
Weight (grms) | 449 |
प्रतिनिधि कहानिया / मृदुला गर्ग लगभग पाँच दशकों से लेखन जगत में सक्रिय कथाकार सुश्री मृदुला गर्ग का कथा संसार विविधता के अछोर तक फैला हुआ है। उनकी कहानियाँ मनुष्य के सारे सरोकारों से गहरे तक जुड़ी हुई हैं। समाज, देश, राजनीतिक माहौल, सामाजिक वर्जनाओं, पर्यावरण से लेकर मानव मन की रेशे-रेशे पड़ताल करती नज़र आती हैं। इस संकलन की कहानियाँ अपने इसी 'मूड' या मिजाज़ के साथ प्रस्तुत हुई हैं। मृदुला गर्ग की कहानियों का समापन या प्रारम्भ कहीं भी हो, पर पढ़ना पूरा ही पड़ता है। यह एक ऐसा लुप्त-गुप्त संविधान है जिसे मानने के लिए पाठक बाध्य नहीं है, परन्तु इस तरफ उसका रुझान अनजाने ही चला जाता है। मृदुला गर्ग की कहानियाँ पाठक के लिए इतना 'स्पेस' देती हैं कि आप लेखक को गाइड बना तिलिस्म में नहीं उतर सकते, इसे आपको अपने अनुसार ही हल करना पड़ता है। यही कारण है कि बने-बनाए फॉरमेट या ढर्रे से, ऊबे बगैर, आप पूरी रोचकता, कौतूहल और दार्शनिक निष्कर्ष तक पहुँच सकते हैं। गलदश्रुता के लिए जगह न होते हुए भी आपकी आँखें कब नम हो जाएँ, यह आपके पाठकीय चौकन्ने पर निर्भर करता है। यही मृदुला गर्ग की किस्सागोई का कौशल या कमाल है, जहाँ लिजलिजी भावुकता बेशक नहीं मिलेगी, पर भावना और संवेदना की गहरी घाटियाँ मौज़ूद हैं, एक बौद्धिक विवेचन के साथ
Mridula Garg
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd