यह पुस्तक देश में चलनेवाली सामाजिक मारकाट, ख़ासकर जातीय दंगों और आदिवासी समूहों के आन्दोलनों के कारणों को समझने की कोशिश में शुरू हुई। इन समस्याओं को अलग–अलग ढंग से देखने की जगह पूरी दुनिया में उभरे संकीर्णतावाद और सामाजिक समूहों के टकराव की आम प्रवृत्ति के सन्दर्भ में देखने की कोशिश की गई है। इस परिप्रेक्ष्य में यह पुस्तक मुख्यत: जाति व्यवस्था की उत्पत्ति और उसकी वास्तविकता पर ध्यान केन्द्रित करती है। इस पुस्तक का सबसे बड़ा हिस्सा जाति व्यवस्था की वास्तविकता की जाँच–पड़ताल वाला है। यह महसूस किया गया है कि जाति के सन्दर्भ में जिन बातों को वास्तविक मान लिया जाता है, उनका काफ़ी बड़ा हिस्सा काल्पनिक ही है और इससे ग़लत धारणा बनती है, ग़लत निष्कर्ष तक पहुँचा जाता है। ‘जाति पूर्वाग्रह और पराक्रम’ शीर्षकवाला अध्ययन इस मामले में कुछ बातों को बहुत खुले ढंग से बताता है। और एक अर्थ में यही इस अध्ययन का सबसे महत्त्वपूर्ण हिस्सा है जिससे अन्य निष्कर्ष भी निकाले जाने चाहिए। इसमें जाति व्यवस्था से सम्बन्धित कुछ महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की भी परीक्षा की गई है। होमो–हायरार्किकस वाले सिद्धान्त की कुछ ज़्यादा विस्तार से इसमें चर्चा की गई है, क्योंकि इससे इस विनाशकारी दृष्टि को बल मिल सकता है कि जाति व्यवस्था भारतीय मानस में व्याप्त स्वाभाविक भेदभाव का ही एक प्रतिफल है। यह पुस्तक प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धान्तों के ऊपर भी गम्भीर सवाल खड़े करती है जो सामाजिक यथार्थ के तार्किक और कार्यकारी पहलुओं पर ज़रूरत से ज़्यादा ज़ोर देते हैं। विचारोत्तेजक सामग्री से भरपूर यह पुस्तक निश्चय ही पाठकों को पसन्द आएगी।
Sachchidanand Sinha
सच्चिदानंद सिन्हा सच्चिदानंद सिन्हा का जन्म 30 अगस्त, 1928 को मुजफ्फरपुर जिले के साहेबगंज के परसौनी ग्राम में हुआ। आपका नाम देश के वरिष्ठ समाजवादी विचारकों में शुमार है। अपने छात्र जीवन में ही समाजवादी मूल्यों की राजनीति की तरफ आकृष्ट हुए। फिर, सोशलिस्ट पार्टी के सक्रिय कार्यकर्ता रहे। डॉ. लोहिया की पत्रिका ‘मैनकाइंड’ के सम्पादक मंडल में भी रहे और बाद के दिनों में अपने मित्र किशन पटनायक की वैचारिक पत्रिका ‘सामयिक वार्ता’ के सम्पादकीय सलाहकार रहे। आपने अंग्रेजी तथा हिन्दी में दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें महत्त्वपूर्ण हैं: ‘सोशलिज्म एंड पावर’, ‘कियोस एंड क्रिएशन’, ‘कास्ट सिस्टम: मिथ रियलिटी एंड चैलेंज’, ‘कोएलिशन इन पॉलिटिक्स’, ‘इमर्जेन्सी इन परस्पेक्टिव’, ‘इंटरनल कॉलोनी’, ‘दी बिटर हार्वेस्ट’, ‘सोशलिज्म: ए मैनिफेस्तो फॉर सरवाइवल’, ‘समाजवाद के बढ़ते चरण’, ‘वर्तमान विकास की सीमाएँ’, ‘पूंजीवाद का पतझड़’, ‘संस्कृति विमर्श’, ‘मानव सभ्यता और राष्ट्र-राज्य’, ‘संस्कृति और समाजवाद’, ‘पूँजी का चौथा अध्याय’, ‘भारतीय राष्ट्रीयता और साम्प्रदायिकता’ इत्यादि। निवास स्थान: ग्राम व पोस्ट—मनिका, जिला— मुजफ्फरपुर (बिहार), पिन-845431। रामजय प्रताप पेशे से वकील हैं। साथ ही, एक सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता भी हैं। कला-संस्कृति, साहित्य व राजनीतिक विचार विषयक प्रकाशनों में इनकी गहरी अभिरुचि है और ऐसी चीजों का अनुवाद वह समय-समय पर करते रहते हैं। सच्चिदानंद सिन्हा की पाँच पुस्तकों का इन्होंने हिन्दी अनुवाद किया है और यह पुस्तक उन्हीं महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में से एक है। स्थायी पता: ग्राम व पोस्ट—चैता, जिला—पूर्वी चंपारण (बिहार), पिन-845414।
Sachchidanand Sinha