Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2018 |
ISBN-13 |
9788126730858 |
ISBN-10 |
9788126730858 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
104 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
270 |
कलाओं में भारतीय आधुनिकता के एक मूर्धन्य सैयद हैदर रज़ा एक अथक और अनोखे चित्रकार तो थे ही उनकी अन्य कलाओं में भी गहरी दिलचस्पी थी। विशेषत: कविता और विचार में। वे हिन्दी को अपनी मातृभाषा मानते थे और हालाँकि उनका फ्रेंच और अँग्रेज़ी का ज्ञान और उन पर अधिकार गहरा था, वे, फ्रांस में साठ वर्ष बिताने के बाद भी, हिन्दी में रमे रहे। यह आकस्मिक नहीं है कि अपने कला-जीवन के उत्तराद्र्ध में उनके सभी चित्रों के शीर्षक हिन्दी में होते थे। वे संसार के श्रेष्ठ चित्रकारों में, 20-21वीं सदियों में, शायद अकेले हैं जिन्होंने अपने सौ से अधिक चित्रों में देवनागरी में संस्कृत, हिन्दी और उर्दू कविता में पंक्तियाँ अंकित कीं। बरसों तक मैं जब उनके साथ कुछ समय पेरिस में बिताने जाता था तो उनके इसरार पर अपने साथ नवप्रकाशित हिन्दी कविता की पुस्तकें ले जाता था : उनके पुस्तक-संग्रह में, जो अब दिल्ली स्थित रज़ा अभिलेखागार का एक हिस्सा है, हिन्दी कविता का एक बड़ा संग्रह शामिल था।
Prakash
जन्म : 11 नवम्बर, 1976 कोलकाता
मृत्यु : 23 जनवरी, 2016
हिन्दी साहित्य से स्नातकोत्तर। पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला से इन्होंने पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की। कविता और आलोचना इनके सृजन-कर्म की प्रमुख विधा रही।
देश की प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं में इनकी कवितायें और वैचारिक आलेख प्रकाशित हुए। प्रकाश का पहला कविता-संग्रह ‘होने की सुगन्ध’ वर्ष 2009 में प्रकाशित हुआ, जिसे भारतीय भाषा परिषद् ने वर्ष 2012 के ‘युवा पुरस्कार’ से सम्मानित किया।
लम्बी अखबारनवीसी और कुछ प्रकाशन-गृहों से विभिन्न रूपों में सम्बद्धता के बाद आठ वर्षों तक केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, आगरा की शोध-पत्रिका ‘गवेषणा’ से बतौर सहायक सम्पादक जुड़े रहे।
Prakash
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