Mahabazar Ke Mahanyak  (Hb)

Author:

Prahlad Agrawal

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Rs269 Rs350 23% OFF

Availability: Available

    

Rating and Reviews

0.0 / 5

5
0%
0

4
0%
0

3
0%
0

2
0%
0

1
0%
0
Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2019
ISBN-13

9789388753067

ISBN-10 9789388753067
Binding

Hardcover

Number of Pages 96 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 20 x 14 x 4
Weight (grms) 270
सिनेमा कला का वह रूप है जो बाज़ार की शर्तों पर भी चलता है, और बाज़ार के लिए नयी शर्तें और मे'आर भी तय करता है। भारत में यही एकमात्र आर्ट है जिसकी रचना बाज़ार को ध्यान में रखकर की जाती है; वह बाज़ार जिसमें जनता ख़रीदार है, उसी की पसन्द-नापसन्द से सिनेमाई उत्पाद का भविष्य तय होता है। प्रहलाद अग्रवाल हिन्दी के उन गिने-चुने लेखकों में हैं जिन्होंने सिनेमा के उतार-चढ़ाव पर हमेशा निगाह रखी है, नये ट्रेंड्स को पकड़ा है, सामाजिक-राजनीतिक सन्दर्भों में उनकी व्याख्याएँ की हैं, और फ़िल्मीगॉसिप की जगह सिनेमा का एक भाषिक विमर्श रचने का प्रयास किया है। इस पद्यात्मक किताब में वे यही काम थोड़ा अलग ढंग से कर रहे हैं। इसमें उनकी कुछ लम्बी कविताएँ ली गयी हैं जिनका विषय हिन्दी सिनेमा, उसके नायक-महानायक, सपनों की उस नगरी के भीतरी यथार्थ, उसके आदर्श, समाज के साथ उसके रिश्तों पर उन्होंने एक ख़ास तरंग में अपनी अनुभूतियों को बुना है। कह सकते हैं कि यह हिन्दी फिल्मों के स्याह-सफ़ेद की काव्यात्मक व्याख्या है, जिसे पढऩे का अपना आनन्द है। इसे पढ़ते हुए हमें सूचनाएँ भी मिलती हैं और विचार भी। इसमें फिल्म पत्रकारिता का स भी है और कविता भी। ''सिनेमा हमारे समय में एक प्रबल उपस्थिति, लोकप्रिय विधा और कलात्मक और मानवीय सम्भावनाओं का वितान लिये हुए है। प्रह्लाद अग्रवाल सिनेमा के अनूठे रसिक हैं और उस पर उन्होंने कई तरह से विचार किया है। यह पुस्तक नयी रोचक शैली में लिखी गयी है। इसे प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।"

Prahlad Agrawal

यायावर, आवारामिजाज। संगीत, साहित्य और सिनेमा से गहरी आशिकी। पिछले तीन दशकों में बहुआयामी लेखन। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशन। शासकीय स्वशासी महाविद्यालय में प्राध्यापक। रचनाएँ: हिंदी कहानी: सातवाँ दशक तानाशाह (उपन्यास) प्यासा: चिर अतृप्त गुरुदत्त कवि शैलेन्द्र: जिंदगी की जीत में यकीन उत्ताल उमंग: सुभाष घई की फिल्मकला बाजार के बाजीगर: इक्कीसवीं सदी का सिनेमा ओ रे मांझी...: बिमलराय का सिनेमा जुग जुग जिए मुन्नाभाई: छवियों का मायाजाल ‘वसुधा’ के बहुचर्चित फिल्म विशेषांक का संपादन एवं कई पुस्तकों के सहयोगी लेखक।.
No Review Found
More from Author