मेघदूत में कालिदास ने आदर्श प्रेम का चित्रण किया है। निःस्वार्थ प्रेम का जैसा चित्र मेघदूत में देखने को मिलता है वैसा और किसी अन्य काव्य में नहीं। मेघदूत के यक्ष का प्रेम निर्दोष है, ऐसे प्रेम से क्या नहीं हो सकता है? प्रेम से जीवन पवित्र हो सकता है। प्रेम से जीवन का अलौकिक सौंदर्य प्राप्त हो सकता है। प्रेम से जीवन सार्थक हो सकता है। मनुष्य प्रेम से ईश्वर-संबंधी प्रेम की उत्पत्ति भी हो सकती है। यह काव्य उच्च प्रेम का सजीव उदाहरण है
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वासुदेवशरण अग्रवाल जन्म: 1904 शिक्षा: 1929 में लखनऊ विश्वविद्यालय से एम.ए., 1946 में पीएच.डी. तथा डी.लिट् की उपाधियाँ प्राप्त कीं। प्रकाशित कृतियाँ: पृथ्वी-पुत्र (1949), उरु-ज्योति (1952), कला और संस्कृति (1952), कल्पवृक्ष (1953), माता-भूमि (1953), हर्षचरित: एक सांस्कृतिक अध्ययन (1953), भारत की मौलिक एकता (1954), मलिक मुहम्मद जायसी: पद्मावत (1955), पाणिनिकालीन भारतवर्ष (1955), भारत-सावित्री (1957), कादम्बरी: एक सांस्कृतिक अध्ययन (1958), इतिहास-दर्शन (1978) आदि। राधाकुमुद मुखर्जी कृत हिन्दू सभ्यताका अनुवाद (1955)। शृंगारहाट का सम्पादन (डॉ. मोती चन्द के साथ)। कालिदास के मेघदूत एवं बाणभट्ट के हर्षचरित की नवीन पीठिका प्रस्तुत की। भारतीय साहित्य और संस्कृति के गम्भीर अध्येता के रूप में एक अविस्मरणीय नाम। निधन: 1966.
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