Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2017 |
ISBN-13 |
9788126730445 |
ISBN-10 |
9788126730445 |
Binding |
Hardcover |
Number of Pages |
150 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
300 |
दिनेश कुमार शुक्ल की कविता में जीवन और जन के राग का उत्सव है जो आश्चर्य नहीं कि अक्सर छन्द में आता है, नहीं तो छन्द की परिधि पर कहीं दूर-पास मँडराता हुआ। उनकी कविता समय की समूची दुखान्तिकी से परिचित है, उस पूरे अवसाद से भी जिसे समय ने अपनी उपलब्धि के रूप में अर्जित किया है, लेकिन वह उम्मीद की अपनी ज़मीन नहीं छोड़ती। कारण शायद यह है कि जन-जीवन, लोक-अनुभव और भाषा के भीतर निबद्ध जनसामान्य के मन की ता$कत की एक बड़ी पूँजी उनके पास है।
Dinesh Kumar Shukl
हिन्दी के प्रतिष्ठित कवि।
जन्म : वर्ष 1950 में नर्वल ग्राम, जि़ला कानपुर (उ.प्र.)।
शिक्षा : एम.एस-सी., डी.फिल. (फिजि़क्स), इलाहाबाद विश्वविद्यालय।
प्रकाशित रचनाएँ : कविता-संग्रह—समयचक्र (1997), कभी तो खुलें कपाट (1999), नया अनहद (2001), कथा कहो कविता (2005), ललमुनिया की दुनिया (2008), आखर
अरथ (2009), समुद्र में नदी (2011)। सम्पादन—कई समयों में कवि कुँवरनारायण
की रचनाओं का संचयन। काव्यानुवाद—
पाब्लो नेरूदा की कविताएँ (1989), कुछ आलोचनात्मक गद्य, समीक्षाएँ, टिप्पणियाँ
और निबन्ध।
Dinesh Kumar Shukl
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd