Publisher |
Rajkamal Parkashan Pvt Ltd |
Publication Year |
2016 |
ISBN-13 |
9788126719358 |
ISBN-10 |
9788126719358 |
Binding |
Paperback |
Number of Pages |
162 Pages |
Language |
(Hindi) |
Dimensions (Cms) |
20 x 14 x 4 |
Weight (grms) |
181 |
नेमप्लेट क्षमा शर्मा की 28 कहानियों का यह संग्रह स्त्री की दुनिया के जितने आयामों को खोलता है, उसके जितने सम्भवतम रूपों को दिखाता है, स्त्री के बारे में जितने मिथों और धारणाओं को तोड़ता है, ऐसा कम ही कहानीकारों के कहानी-संग्रहों में देखने को मिलता है। क्षमा शर्मा हिन्दी लेखकों की आम आदत के विपरीत अपेक्ष्या छोटी कहानियाँ लिखती हैं जो अपने आप में सुखद है। उनकी लगभग हर कहानी स्त्री-पात्र के आसपास घूमती जरूर है मगर क्षमा शर्मा उस किस्म के स्त्रीवाद का शिकार नहीं हैं जिसमें स्त्री की समस्याओं के सारे हल सरलतापूर्वक पुरुष को गाली देकर ढूँढ़ लिए जाते हैं। इसका मतलब यह नहीं है कि वह पुरुषों या पुरुष वर्चस्ववाद को बख़्शती हैं, उसकी मलामत वे जरूर करती हैं और खूब करती हैं मगर उनकी तमाम कहानियों से यह स्पष्ट है कि उनके एजेंडे में स्त्री की तकलीफें, उसके संघर्ष और हिम्मत से स्थितियांे का मुकाबला करने की उसकी ताकत को उभारना ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। वह इस मिथ को तोड़ती हैं कि सौतेली माँ, असली माँ से हर हालत में कम होती है या एक विधुर बूढ़े के साथ एक युवा स्त्री के सम्बन्धों में वह प्यार और चिन्ता नहीं हो सकती, जो कि समान वय के पुरुष के साथ होती है। वह देह पर स्त्री के अधिकार की वकालत करती हैं और किसी विशेष परिस्थिति में उसे बेचकर कमाने के विरुद्ध कोई नैतिकतावादी रवैया नहीं अपनातीं। उनकी कहानियों में लड़कियाँ हैं तो बूढ़ी औरतें भी हैं, दमन की शिकार वे औरतें हैं जो एक दिन चुपचाप मर जाती हैं तो वे भी हैं जो कि लगातार संघर्ष करती हैं लेकिन स्त्री की दुनिया के अनेक रूपों को हमारे सामने रखनेवाली ये कहानियाँ किसी और दुनिया की कहानियाँ नहीं लगतीं, हमारी अपनी इसी दुनिया की लगती हैं बल्कि लगती ही नहीं, हैं भी। इनके पात्र हमारे आस-पास, हमारे अपने घरों में मिलते हैं। बस हमारी कठिनाई यह है कि हम उन्हें इस तरह देखना नहीं चाहते, देख नहीं पाते, जिस प्रकार क्षमा शर्मा हमें दिखाती हैं और एक बार जब हम उन्हें इस तरह देखना सीख जाते हैं तो फिर वे एक अलग व्यक्ति, एक अलग शख़्सियत नजर आती हैं और हम स्त्री के बारे में सामान्य किस्म की उन सरल अवधारणाओं से जूझने लगते हैं जिन्हें हमने बचपन से अब तक प्रयत्नपूर्वक पाला है, संस्कारित किया है। क्षमा शर्मा की कहानियों की यह सबसे बड़ी ताकत है, उनकी भाषा और शैली की पुख़्तगी के अलावा।
Kshama Sharma
क्षमा शर्मा जन्म : अक्टूबर, 1955 । शिक्षा : एम–ए– (हिन्दी प्रथम श्रेणी), पत्रकारिता में डिप्लोमा, साहित्य और पत्रकारिता में पी–एच–डी– । कृतियाँ : कहानी संग्रह काला कानून, कस्बे की लड़की, घर–घर तथा अन्य कहानियाँ, थैंक्यू सद्दाम हुसैन, लव स्टोरीज, इक्कीसवीं सदी का लड़का । उपन्यास दूसरा पाठ, परछार्इं अन्नपूर्णा, शस्य का पता, मोबाइल । स्त्री विषयक स्त्री का समय, स्त्रीत्ववादी विमर्श समाज और साहित्य, औरतें और आवाजें । पत्रकारिता विषयक व्यावसायिक पत्रकारिता का कथा–साहित्य के विकास में योगदान । बंद गलियों के विरुद्ध (मृणाल पांडे के साथ सम्पादन) । राजस्थान शिक्षा परिषद के लिए ‘सरसों के फूल’ का सम्पादन । बच्चों के लिए लगभग दो दर्जन पुस्तकें । लेखिका के कथा–साहित्य पर आगरा विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, राजस्थान विश्वविद्यालय तथा भोपाल विश्वविद्यालय में पाँच छात्राएँ शोधरत । पंजाबी उर्दू, अंग्रेजी, तेलुगु में रचनाओं का अनुवाद । पुरस्कार और सम्मान : हिन्दी अकादमी, दिल्ली द्वारा दो बार पुरस्कृत, बाल कल्याण संस्थान, कानपुर, इंडो रूसी क्लब नई दिल्ली तथा सोनिया ट्रस्ट नई दिल्ली द्वारा सम्मानितय भारतेन्दु हरिश्चन्द्र पुरस्कारय सी–आई–ई–टी– के लिए बहुत–से कैसेटों और फिल्मों का लेखनय टेली–फिल्म ‘गाँव की बेटी’ दूरदर्शन से प्रसारितय 1976 से आकाशवाणी के लिए नियमित लेखनय महिला संगठनों और पत्रकारों की यूनियन में सक्रिय भागीदारी । दो बार इंडियन प्रेस कोर की प्रबन्ध समिति में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रमुख । दूरदर्शन के राष्ट्रीय पुरस्कारों की ज्यूरी की सदस्या (2001–2002, 2003–2004) । सम्प्रति : उनतीस वर्षों से हिन्दुस्तान टाइम्स की बाल पत्रिका नन्दन से सम्बद्ध । वर्तमान में कार्यकारी सम्पादक । पता : 17–बी/1, हिन्दुस्तान टाइम्स अपार्टमेंट्स, मयूर विहार, फेज–1, दिल्ली–110091
Kshama Sharma
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