Nashtar (Hindi)

Author:

Abdul Bismillah

,

Hasan Shah

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2022
ISBN-13

9789390971855

ISBN-10 9390971853
Binding

Paperback

Edition 1st
Number of Pages 167 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 22.5X14X1.5
Weight (grms) 189

‘नश्तर’ को पहला भारतीय उपन्यास कहा जा सकता है। सन् 1790 में जब हसन शाह ने इसे लिखा था तब तक हमारे यहाँ अंग्रेज़ी तर्ज़ के ‘नॉवेल’ का प्रादुर्भाव नहीं हुआ था। यह वो ज़माना था जब भारत में नवाबी शानो-शौक़त अपने उतार पर थी और अंग्रेज़ों ने जगह-जगह अपनी जड़ें जमाना शुरू कर दिया था। अब वे ही स्वयं को नवाब समझने लगे थे और यहाँ की नाचने-गाने वाली स्त्रियों से अपना मनोरंजन करना उनका शौक़ बन गया था। इसके चलते इस व्यवसाय से जुड़ी स्त्रियों के समूह भी रोज़ी-रोज़गार के सिलसिले में अंग्रेज़ी दरबारों से जुड़ने लगे थे। ‘नश्तर’ का कथानायक ऐसे ही एक समूह की एक लड़की के प्रेम में पड़ जाता है जिसका अंजाम किसी ग्रीक ट्रेजेडी से कम नहीं होता। खानम जान के मोहक लेकिन सशक्त व्यक्तित्व ने उस ट्रेजेडी को जो गरिमा प्रदान की है, वह अद्भुत है। ‘नश्तर’ एक आत्मकथात्मक उपन्यास है। एक प्रेमकथा। एक त्रासदी...किन्तु यह केवल प्रेम की नहीं, बल्कि नृत्य-संगीत और कला-संस्कृति से जुड़ी एक पूरी ज़िन्दगी, पूरी परम्परा की भी त्रासदी है। मूलत: फ़ारसी भाषा में रची गई अठारहवीं शताब्दी की इस कृति में शिल्प के स्तर पर आधुनिकता के अनेक लक्षणों को भी देखा जा सकता है।

Abdul Bismillah

अब्दुल बिस्मिल्लाह जन्म: 5 जुलाई, 1949 को इलाहाबाद जिले के बलापुर गाँव में। शिक्षा: इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में एम.ए. तथा डी.फिल्.। 1993-95 के दौरान वार्सा यूनिवर्सिटी, वार्सा (पोलैंड) में तथा 2003-05 के दौरान भारतीय दूतावास, मॉस्को (रूस) के जवाहरलाल नेहरू सांस्कृतिक केन्द्र में विजि़टिंग प्रोफ़ेसर रहे। 1988 में सोवियत संघ की यात्रा। उसी वर्ष ट्यूनीशिया में सम्पन्न अफ्रो-एशियाई लेखक सम्मेलन में शिरकत। पोलैंड में रहते हुए हंगरी, जर्मनी, प्राग और पेरिस की यात्राएँ। 2002 में म्यूनि$ख (जर्मनी) में आयोजित 'इंटरनेशनल बुक वीक' कार्यक्रम में हिस्सेदारी। 2012 में जोहांसबर्ग में आयोजित विश्व-हिन्दी सम्मेलन में शिरकत। कृतियाँ: अपवित्र आख्यान, झीनी झीनी बीनी चदरिया, मुखड़ा क्या देखे, समर शेष है, ज़हरबाद, दंतकथा, रावी लिखता है (उपन्यास), अतिथि देवो भव, रैन बसेरा, रफ़ रफ़ मेल, शादी का जोकर (कहानी-संग्रह), वली मुहम्मद और करीमन बी की कविताएँ, छोटे बुतों का बयान (कविता-संग्रह), दो पैसे की जन्नत (नाटक), अल्पविराम, कजरी, विमर्श के आयाम (आलोचना), दस्तंबू (अनुवाद) आदि। झीनी झीनी बीनी चदरिया के उर्दू तथा अंग्रेज़ी अनुवाद प्रकाशित। अनेक कहानियाँ मराठी, पंजाबी, मलयालम, तेलगू, बांग्ला, उर्दू, जापानी, स्पैनिश, रूसी तथा अंग्रेज़ी में अनूदित। रावी लिखता है उपन्यास पंजाबी में पुस्तकाकार प्रकाशित। रफ़ रफ़ मेल की 12 कहानियाँ रफ़ रफ़ एक्सप्रेस शीर्षक से फ्रेंच में अनूदित एवं पेरिस से प्रकाशित। सम्मान: सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार, दिल्ली हिन्दी अकादमी, उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान और म.प्र. साहित्य परिषद के देव पुरस्कार से सम्मानित। सम्प्रति: केन्द्रीय विश्वविद्यालय जामिया मिल्लिया इस्लामिया, नई दिल्ली के हिन्दी विभाग में प्रोफ़ेसर।.

Hasan Shah

हसन शाह के जीवन से जुड़ी कोई प्रामाणिक जानकारी उपलब्ध नहीं है। चूँकि ‘नश्तर’ एक आत्मकथात्मक रचना है, इसलिए उन्हीं के अनुसार उनके पूर्वज उत्तर मुग़ल काल में ही यमन से मध्य एशिया होते हुए भारत आ गए थे। उनका पूरा नाम सैयद हसन शाह था और वे मिंग नामक एक अंग्रेज़ अफ़‍सर के यहाँ मुंशी थे। मिंग और कल्लन साहब सम्भवत: मैनिंग (Manning) और कॉलिंस (Collins) थे। हसन शाह की सूचना के अनुसार मिंग साहब सर आयर कूट (Eyre Coote) के भांजे थे और कानपुर में रहते थे। कानपुर उन दिनों अंग्रेज़ों की छावनी बन चुका था। हसन शाह ने लगभग 20 वर्ष की उम्र में ‘नश्तर’ की रचना की थी। हिजरी सन् 1205 यानी सन् 1790 ई. में। यह भी पता चलता है कि कालान्तर में उन्होंने कानपुर छोड़ दिया था और लखनऊ जाकर बस गए थे। वहाँ वे उस समय के प्रसिद्ध शाइर ‘जुर्रत’ के शिष्य हो गए थे। सम्भवत: उन्होंने कभी विवाह नहीं किया और अपना पूरा जीवन किसी सूफ़ी सन्त की तरह बिताया। एक जानकारी और मिलती है कि 1883 ई. में अपने छोटे भाई हुसैन शाह के निधन के समय हसन शाह जीवित थे।
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