Mrinal Pandey
जन्म: 26 फरवरी, 1946 को टीकमगढ़, मध्य प्रदेश में। शिक्षा: एम.ए. (अंग्रेज़ी साहित्य), प्रयाग विश्वविद्यालय, इलाहाबाद। गन्धर्व महाविद्यालय से ‘संगीत विशारद’ तथा कॉरकोरन स्कूल ऑफ आर्ट, वाशिंगटन में चित्रकला एवं डिजाइन का विधिवत् अध्ययन। कई वर्षों तक विभिन्न विश्वविद्यालयों (प्रयाग, दिल्ली, भोपाल) में अध्यापन के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में आईं। साप्ताहिक हिन्दुस्तान, वामा तथा दैनिक हिन्दुस्तान के सम्पादक के बतौर समय-समय पर कार्य किया। स्टार न्यूज़ और दूरदर्शन के लिए हिन्दी समाचार बुलेटिन का सम्पादन किया। तदुपरान्त प्रधान सम्पादक के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, कादम्बिनी एवं नन्दन से जुड़ीं। वर्ष 2010 से 2014 तक प्रसार भारती की चेयरमैन भी रहीं। प्रकाशित पुस्तकें: विरुद्ध, पटरंगपुर पुराण, देवी, हमका दियो परदेस, अपनी गवाही (उपन्यास); दरम्यान, शब्दवेधी, एक नीच ट्रैजिडी, एक स्त्री का विदागीत, यानी कि एक बात थी, बचुली चौकीदारिन की कढ़ी, चार दिन की जवानी तेरी (कहानी-संग्रह); मौजूदा हालात को देखते हुए, जो राम रचि राखा, आदमी जो मछुआरा नहीं था, चोर निकल के भागा, सम्पूर्ण नाटक (नाटक) और देवकीनन्दन खत्री के उपन्यास काजर की कोठरी का इसी नाम से नाट्य-रूपान्तरण; परिधि पर स्त्री, स्त्री: देह की राजनीति से देश की राजनीति तक, स्त्री: लम्बा सफर (निबन्ध); बन्द गलियों के विरुद्ध (सम्पादन); ओ उब्बीरी (स्वास्थ्य); मराठी की अमर कृति माझा प्रवास: उन्नीसवीं सदी तथा अमृतलाल नागर की हिन्दी कृति गदर के फूल का अंग्रेज़ी में अनुवाद। अंग्रेज़ी: द सब्जेक्ट इज वूमन (महिला-विषयक लेखों का संकलन); द डॉटर्स डॉटर, माई ओन विटनेस (उपन्यास); देवी (उपन्यास-रिपोर्ताज); स्टेपिंग आउट: लाइफ एंड सेक्सुअलिटी इन रुरल इंडिया।
Shivani
शिवानी,जन्म : 17 अक्तूबर, 1923 को विजयादशमी के दिन राजकोट (गुजरात)।शिवानी की पहली रचना अल्मोड़ा से निकलनेवाली ‘नटखट’ नामक एक बाल-पत्रिका में छपी थी। तब वे मात्र बारह वर्ष की थीं। इसके बाद वे मालवीय जी की सलाह पर पढ़ने के लिए अपनी बड़ी बहन जयंती तथा भाई त्रिभुवन के साथ शान्तिनिकेतन भेजी गईं, जहाँ स्कूल तथा कॉलेज की पत्रिकाओं में बांग्ला में उनकी रचनाएँ नियमित रूप से छपती रहीं। गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर उन्हें ‘गोरा’ पुकारते थे। उनकी ही सलाह कि हर लेखक को मातृभाषा में ही लेखन करना चाहिए, शिरोधार्य कर उन्होंने हिन्दी में लिखना प्रारम्भ किया। शिवानी की पहली लघु रचना ‘मैं मुर्गा हूँ’ 1951 में ‘धर्मयुग’ में छपी थी। इसके बाद आई उनकी कहानी ‘लाल हवेली’ और तब से जो लेखन-क्रम शुरू हुआ, उनके जीवन के अन्तिम दिनों तक अनवरत चलता रहा। उनकी अन्तिम दो रचनाएँ ‘सुनहुँ तात यह अकथ कहानी’ तथा ‘सोने दे’ उनके विलक्षण जीवन पर आधारित आत्मवृत्तात्मक आख्यान हैं।1979 में शिवानी जी को ‘पद्मश्री’ से अलंकृत किया गया। उपन्यास, कहानी, व्यक्ति-चित्र, बाल उपन्यास और संस्मरणों के अतिरिक्त, लखनऊ से निकलनेवाले पत्र ‘स्वतंत्र भारत’ के लिए शिवानी ने वर्षों तक एक चर्चित स्तम्भ ‘वातायन’ भी लिखा। उनके लखनऊ स्थित आवास-66, गुलिस्ताँ कालोनी के द्वार लेखकों, कलाकारों, साहित्य-प्रेमियों के साथ समाज के हर वर्ग से जुड़े उनके पाठकों के लिए सदैव खुले रहे।निधन : 21 मार्च, 2003 (दिल्ली)।
Mrinal Pandey
,Shivani
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