Pyar Karta Hua Koi Ek (Hindi)

Author:

Manoj Kumar Pandey

Publisher:

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

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Publisher

Rajkamal Parkashan Pvt Ltd

Publication Year 2022
ISBN-13

9789395737074

ISBN-10 9395737077
Binding

Paperback

Edition 1st
Number of Pages 128 Pages
Language (Hindi)
Dimensions (Cms) 19X13X1
Weight (grms) 135

प्यार जब जीवन और कविता, दोनों जगह दुर्लभ हो रहा हो, दोनों ही जगह जब समाज और व्यवस्था में उग रहीं विषैली, प्रेमविरोधी और हिंस्र प्रतिक्रियाएँ मुख्यधारा हो रही हों, तब 'प्यार करता हुआ कोई एक' भी बड़ी राहत, और गहरी आश्वस्ति का स्रोत मालूम होता है। यह कविता-संग्रह उन प्रेमियों के लिए है जिनसे जाने-अनजाने उनका प्रेम खो गया है; और दुखद यह है कि आज के समय में जीनेवाले हम सभी उसी श्रेणी में आते हैं। कभी हम उसे समझ नहीं पाते, कभी उसे सँभाल नहीं पाते क्योंकि हम सिर्फ़ 'प्रेम में होकर' बने रह सकें, इस विकल्प को ही कर सकनेवालों ने असम्भव कर दिया है। इसलिए ये कविताएँ हम सबके लिए हैं। ये प्रेम की उस खाली जगह से उद्भूत हुई हैं जहाँ से अभी-अभी उठकर कोई गया है, जहाँ अभाव से भरी हुई एक कुर्सी अभी भी रखी है, हिल रही है, लेकिन उसे छूते हुए हमारे हाथ काँपते हैं, जिसे देखकर हमें हमारी अपात्रता याद आती है। बीती हुई नजदीकियों के चमकीले कणों से दमकती ये कविताएँ विछोह के असीम पठार पर प्रेम के सबसे गहन सत्य की खोज में भटकती हुई हमें प्रेम की कीमत समझाती हैं। बताती हैं कि जब वह होता है तब भी, और जब नहीं होता तब भी, वह अमूल्य है, वह हर रूप में हमें ज्यादा मानवीय और ज्यादा सम्भावनाशील बनाता है। और यह कि, उसके 'होने' और 'न होने' से परे का प्रेमच्युत संसार कुछ भी नहीं है। 'मुझसे लिपटती है मेरी जान/वो मुझे खाती है मैं उसे/मैं उसकी बाँहों में मजे से मर जाता हूँ।' ये कविताएँ हमें कोंचकर पूछती हैं कि 'मजे से मरे' हुए हमें कितनी सदियाँ बीत गई हैं; कि कितना वक्त हो गया है हमें किसी की तलाश में भटककर खुद से जा मिले हुए। ये कविताएँ प्रेम के अभाव में जीने के हमारे अभ्यास को तोड़ती हैं; वियोग की अलग-अलग कन्दराओं से आहों की तरह निकली ये पंक्तियाँ हमें पुन: प्रेम की अबूझ दुनिया में जाने को उकसाती हैं।

Manoj Kumar Pandey

7 अक्टूबर, 1977 को इलाहाबाद के एक गाँव सिसवाँ में जन्म। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिन्दी साहित्य में परास्नातक। लम्बे समय तक लखनऊ और वर्धा में रहने के बाद आजकल फिर से इलाहाबाद में। कहानियों की तीन किताबें शहतूत, पानी और खजाना प्रकाशित। कई किताबों का सम्‍पादन। देश की अनेक नाट्य संस्थाओं द्वारा कई कहानियों का मंचन। कई कहानियों पर फिल्में भी। अनेक कहानियों का उर्दू, पंजाबी, मराठी, ‌उड़िया, गुजराती, मलयालम तथा अंग्रेजी आदि भाषाओं में अनुवाद। कहानियों के अतिरिक्त कविता और आलोचना में भी रचनात्मक रूप से सक्रिय। कहानियों के लिए वनमाली युवा कथा सम्मान, राम आडवाणी पुरस्कार, रवींद्र कालिया स्मृति कथा सम्मान, स्पंदन कृति सम्मान, भारतीय भाषा परिषद का युवा पुरस्कार, मीरा स्मृति पुरस्कार, विजय वर्मा स्मृति सम्मान, प्रबोध मजुमदार स्मृति सम्मान ।.
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